प्राकृतिक आपदाओं पर इंसान का वश नहीं रहता है लेकिन क्या यह सोचकर हम यूँ ही हाथ पर हाथ धरे बैठे रह सकते हैं? आज देश की राजधानी दिल्ली सहित देश के कई राज्य बाढ़ की चपेट में हैं| मूसलाधार बारिश और बाढ़ से आम लोगों की ज़िंदगी नर्क बन गई है, लोग अपने जान माल की रक्षा के लिए त्राहि-त्राहि हैं| बारिश और बाढ़ ने विनाशकारी रूप धारण कर लिया है लेकिन क्या हमने कभी सोचने की कोशिश की है कि ऐसा क्यों हो रहा है? हमारी संवेदना उन लोगों के साथ है जो इससे प्रभावित हैं| हम उनके साथ सहानुभूति रखते हैं जिन्होंने अपने परिजनों को खोया| लेकिन इन सबके लिये क्या मनुष्य जिम्मेदार नहीं है?
प्राकृतिक संसाधनों के असीमित दोहन से आज प्राकृतिक असंतुलन हो रहा है| आधुनिक होने कि चाह ने हमें अपने ज़मीन से अलग कर दिया है| प्रदुषण के कारण आज ग्लोबल वार्मिंग का खतरा मंडरा रहा है जो पूरी मानव सभ्यता को ही लील जाने को आतुर है| हमें अफ़सोस होता है कि अपना विनाश सामने देखकर भी हम सतर्क नहीं हैं| बिहार में बाढ़ से ज्यादा तरजीह चुनाव को दी जा रही है| सरकार से लेकर कोई भी इसके कारणों को जानने कि कोशिश नहीं कर रहा है जो सबसे दुखद है| विकसित राष्ट्र इसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं|
इसकी नैतिक ज़िम्मेदारी मनुष्य को लेनी चाहिए| और पृथ्वी पर मंडरा रहे इस भयंकर खतरे के लिए एकजुट होकर प्रयास करना चाहिए| वरना मानव सभ्यता का विनाश हो जायेगा|
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