पूरे विश्व में मर्यादा पुरुषोत्तम के नाम से जाने जानेवाले भगवान श्रीराम की धरती अयोध्या आज भय,आतंक, और संगीनों के साये में अपने अतीत को मुहँ चिढ़ा रही है| आगामी २४ सितम्बर को इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा अयोध्या के रामजन्मभूमि और बाबरी मस्जिद के मालिकाना हक को लेकर फैसला आने वाला है लेकिन इम्तिहान की घड़ियाँ पहले से ही शुरू हो चुकी है| लेकिन एक धर्मनिरपेक्ष गणराज्य में ऐसा कहना क्या हास्यास्पद नहीं है? फिर किस धर्मनिरपेक्षता पर गर्व करते हैं हम जहाँ एक छोटे से फैसले के लिए संगीनों की दीवार खड़ी करनी पड़ती है?
सच तो यह है की इस देश को साम्प्रदायिकता की आग में धकेलने के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार राजनीतिक पार्टियां और उससे जुड़े संगठन रहे हैं| इसे न्यायालय में इतने दिनों तक लटकाने की ज़िम्मेदारी भी इनकी है| और अब जब न्यायपालिका इसका पटाक्षेप करने की तैयारी कर चुकी है, इसके विपरीत माहौल बनाने का कुत्सित प्रयास भी यही लोग कर रहे हैं| हम मानते हैं कि यह एक गंभीर और संवेदनशील मामला है| इसमें सहनशीलता बहुत ज़रुरी है| लेकिन परदे के पीछे क्या चल रहा है इसपर नज़र रखी जानी चाहिए|
धर्म किसी भी व्यक्ति का निजी मामला है इसपर राजनीति कतई जायज़ नहीं है| आमलोगों को भी चाहिए की वो सिर्फ़ भावनाओं में बहकर कोई फैसला न ले, अफवाहों के पीछे न भागकर सच और झूठ की तहकीकात करने के बाद ही कोई निर्णय लें| ताकि निर्दोष लोग बेवजह किसी हादसे का शिकार न हों| हम उम्मीद करते हैं कि भारतीय इस घडी में संयम से काम लेंगे|
राजनीति अगर धर्म के नाम पे नहीं होगी तो किस नाम पे होगी? जब तक देश के नागरिक, पढ़ लिख के , जागरूक नहीं होंगे, यह सब चलता रहेगा. एक उम्दा लेखा?
ReplyDeleteराजनीति समाज के विकास पर होनी चाहिए|
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