एक बार फिर पुलिस और सरकार का बर्बर और असली चेहरा नज़र आया| सिपाही भर्ती में धांधली के खिलाफ सिपाही अभ्यर्थियों पर लाठी चार्ज सरकार और प्रशासन की दबंगई को दर्शाता है| २२ दिसम्बर को पटना में सिपाही भर्ती के अभ्यर्थी छात्रों पर लाठी चार्ज किया गया था जब वो भर्ती में धांधली के खिलाफ मुख्यमन्त्री से मिलने आये थे| नई सरकार के पहले जनता दरबार में छात्रों पर अत्याचार किया गया| आम लोगों का रक्षक प्रशासन इंसानियत को कैसे भूल सकता है? किसी भी लोकतान्त्रिक सरकार को इस बात की इज़ाज़त नहीं है कि वो अपनी मर्यादा भूल जाये| क्या सरकार और उसका तंत्र इस बात का ज़वाब देगा कि जब जनता दरबार लोगों की समस्याएँ सुनने के लिए ही लगाया गया था तो फिर उन अभ्यर्थियों की समस्या को क्यों नहीं सुनी गई? क्या मुख्यमंत्री श्री नितीश कुमार को इस बात की जानकारी नहीं थी कि सिपाही भर्ती में घपले से निराश अभ्यर्थी प्रदर्शन करने वाले हैं? अगर हाँ तो फिर शांति पूर्ण प्रदर्शन कर रहे छात्रों पर लाठी चार्ज करने की नौबत क्यों आई?
अभी सरकार बने १ महीना भी नहीं हुआ और उसका ये क्रूर और असली चेहरा समाज के सामने आ गया| जनता ने सुशासन, कानून व्यवस्था में सुधार और विकास के नाम पर वोट दिया था, और भारी बहुमत से जीत दिलाई थी| लेकिन इसका यह कतई मतलब नहीं है कि वो तानाशाही रवैया अपनाएं| प्रजातंत्र में सबको अपनी बात रखने का अधिकार है, विरोध जताने का अधिकार है और उस सरकार का ये हक है कि जनता की समस्याओं को सुने| लेकिन लोकतान्त्रिक पद्धति से चुनी हुई सरकार इस कर्तव्य को कैसे भूल गई?
एक बात तो मुख्यमंत्री सहित तमाम प्रशासनिक अधिकारीयों को समझ लेनी चाहिए कि भले ही सत्ता की चाबी उनके पास है लेकिन जायज़ मांगो को लाठी के बल पर नहीं दबाया जा सकता| इतिहास चीख चीख कर इस बात की गवाही देता है| और अगर कोई शासक वर्ग ये सोचता है कि इनकी आवाज़ को हम यूँ ही लाठियों और गोलियों से दबा देंगे तो ये उनकी सबसे बड़ी भूल है|
हमें आश्चर्य होता है कि जब भी कहीं इस तरह की घटना घटती है तो दोष हमेशा विरोध करने वाले का दिया जाता है| लेकिन एक बड़ा सवाल यह उठता है जो व्यक्ति दूर दराज़ के गांवों से अपनी बात कहने यहाँ आया है वह अपना सब्र कबतक रख पायेगा? इंसान आखिर इंसान ही होता है| लेकिन इतनी सी बात हमारे तथाकथित कर्णधारों को समझ में नहीं आती| बहरहाल इतना तो तय है कि जनता को बरगला कर और धोखे में रखकर कोई सत्ता में ज्यादा दिनों तक नहीं रह सकता|एक और आश्चर्य की बात कि इस तरह से शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे छात्रों पर बर्बरता पूर्वक लाठी चार्ज किया गया जिसमे कई छात्र घायल हुए लेकिन अगले दिन समाज का हितैषी तथाकथित मीडिया की नज़रों से ये ख़बरें गायब रहीं| क्या बदलाव और विकास की आद में आम आदमी की कोई कीमत नहीं है? या हम इतने परिपक्व हो चुके हैं कि अब हमें ऐसी घटनाओं पर ध्यान ही नहीं देना चाहिए क्योंकि बिहार अब बदल चुका है? यह सोचने कि ज़रूरत है| क्या हम इसके लिए थोडा सा वक्त निकल सकते हैं?
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