काले परदे के पीछे भूमंडलीकरण का निःशब्द कदम धीरे-धीरे सभ्यता का प्रकाश मलिन कर जिस अंधकारमय जगत की ओर लोगों को ले जा रहा है वह चित्र देखने लायक आँख, और समझने लायक मन आज कितने लोगों में है? प्रेम जैसी सुन्दर अनुभूति को भुलाकर, चकाचौंध रोशनी के बीच शरीर का विकृत प्रदर्शन और सेक्स के माध्यम से समाज को विषाक्त बनाने की कोशिश हो रही है| इसी परिकल्पित प्रयास का ही एक नाम ह|ै- स्कूल स्तर पर यौन शिक्षा|
विदित हो कि बिहार सरकार ने पिछले दिनों नौवीं कक्षा से ग्यारहवीं कक्षा के छात्रों को यौन शिक्षा देने का फैसला लिया है| इसके पीछे तर्क ये दिया जा रहा है कि इससे यौन विकृतियाँ कम होंगी तथा छात्रों के मन की जिज्ञासा शांत होगी जिससे वो गलत काम नही करेंगे साथ ही साथ एड्स जैसे भयावह रोगों पर भी रोक लगेगी|
कई सवाल खड़े होते हैं यहां| सबसे बड़ा सवाल तो ये उठता है कि आखिर इसकी ज़रूरत क्यों पड़ी? क्या हमारा समाज इतना सशक्त है कि हम ऐसी चीजों को सकारात्मक दृष्टिकोण से देख सकते हैं? क्या हमारी सभ्यता और संस्कृति हमें ऐसी चीजों को खुलेआम स्वीकार करने की इज़ाज़त देती है? एक और महत्वपूर्ण सवाल कि इससे पहले जितने भी देशों ने इसे लागू किया वहाँ क्या परिणाम सामने आए? यहाँ यह जानना ज़रुरी है कि उनके भी तर्क कमोबेश यही थे जो यहां दिए जा रहे है|
सरकार द्वारा यौन शिक्षा लागू किये जाने के पीछे दिए जा रहे आधारहीन तर्कों का दरअसल कोई मतलब नहीं है| इससे न तो यौन विकृतियाँ कम होंगी और न ही उनके मन की जिज्ञासा शांत होगी बल्कि वो और गलत कामों में लिप्त रहेंगे| और एड्स के रोकथाम जैसे घटिया तर्कों को देनेवाली सरकार से मैं यह पूछना चाहूँगा अभी तक कितने बच्चे एड्स से पीड़ित हैं? और क्या एड्स बच्चों से फैलता है? कदापि नहीं| इसे फ़ैलाने वाले वही तथाकथित पूंजीपति हैं जो ऐशो आराम की जिंदगी जीने के आदि है और पश्चिमी सभ्यता को अपनी जागीर समझते हैं| दूसरी बात ये कि चिकित्सा विज्ञान एड्स फैलने के ४ कारण बताता है| असुरक्षित यौन सम्बन्ध भी उसमे से एक कारण ज़रूर है लेकिन इसे ही आधार बनाकर बच्चों में यौन शिक्षा देने का औचित्य क्या है?
बच्चों को पढाने के लिए जो सिलेबस तैयार किया गया है उसमे भी शादी से पहले सेक्स न करने पर जोर देने के बजाये सुरक्षित सेक्स पर ज्यादा जोर दिया गया है जो उनकी मंशा को स्पष्ट कर देता है कि यौन शिक्षा के नाम पर वो बच्चों में कंडोम के ग्राहक की तलाश कर रहे हैं| और यही पूंजीवादी व्यवस्था का सबसे घिनौना चेहरा है|
मुझे नहीं लगता कि एक बच्चे यौन जिज्ञासाओं को उनके मा –बाप को छोड़कर कोई और अच्छी तरह शांत कर सकता है|
अमेरिका, ब्रिटेन सहित कई विकसित देशों में इसे पहले से लागू किया जा चूका है| अमेरिका में स्कूल स्तर से यौन शिक्षा १९६४ में लागू की गई थी और आज वहाँ आलम यह है कि हर सात में से एक लड़की १४ साल से कम उम्र में प्रेग्नेंट है और हर स्कूल में अबोर्शन सेंटर खोलना पड़ा है| क्या हम अपने देश को ऐसे ही गन्दी बस्तियों में तब्दील कर देना चाहते हैं? क्या हम स्कूलों को सेक्स का अड्डा बनाना चाहते हैं? यह यक्ष प्रश्न बनकर आज हमारे सामने खड़ा है|
गिरिजेश कुमार
एडवांटेज मीडिया एकेडेमी, पटना
मो 09631829853, 08409897857
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