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Thursday, April 7, 2011

“बहरों को सुनाने के लिए धमाके ज़रूरत होती है”

“बहरों को सुनाने के लिए धमाके की ज़रूरत होती है” ये उस पर्चे की पहली पंक्ति थी जिसे भगत सिंह और उनके साथियों ने 8 अप्रेल 1929 को एसेम्बली में बम फेंकने के बाद उछाला था| यह संयोग ही है 82 साल पहले बहरी अंग्रेजी सरकार को जगाने के लिए भगत सिंह ने एसेम्बली में बम फेंका था और आज अन्ना हजारे बहरी सरकार को जगाने के लिए ही आमरण अनशन कर रहें हैं| फर्क सिर्फ़ इतना है कि अंग्रेजी सरकार की जग भारतीय सरकार है और बम की जगह अनशन का हथियार| उद्देश्य समान है और जनता का समर्थन भी|

भ्रष्टाचार के खिलाफ़ शुरू हुई इस सबसे बड़ी जंग में राजनीतिक पार्टियां अपने फायदे को ढूंढने की कुत्सित कोशिश कर रही हैं| आजादी के 63 साल के बाद भी जो पार्टियां भ्रष्टाचार के खिलाफ एक सख्त क़ानून नहीं बना पायी, आज राजनीतिक लाभ के लिए अन्ना हजारे के समर्थन में खड़ी हो रही हैं| वर्तमान भारतीय लोकतान्त्रिक व्यवस्था का यही सबसे घिनौना चेहरा है| दरअसल 73 साल के अन्ना हजारे हिंदुस्तान की बहरी सियासत के सामने उस घुन की दवा मांगने आये हैं जिसने पुरे मुल्क को खोखला बना दिया है| ये उस दधिची की चेतावनी है जिसने अपनी उम्र अन्याय के खिलाफ़ आवाम की आँखें खोलने में गुजार दी|

दिल्ली के जंतर मंतर में जुटी भीड़ किसी विश्व कप के जीतने का जश्न मनाने सड़कों पर नहीं उतरी है| 6 दशकों से जिस चिंगारी को सीने में दबाए हुए लोग घुटन भरी जिंदगी जी रहे थे आज वही शोलों का रूप लेकर लोगों के दिलों में धड़क रहा है| इस आग में वर्तमान भ्रष्ट सरकार की चिता जला दी जाये तो कोई आतिशयोक्ति नहीं होनी चाहिए| आजादी के बाद बिना किसी राजनीतिक बैनर के तले लोग इतनी बड़ी संख्या में पहली बार नजर आ रहे हैं| यह बताता है कि भले ही आज लोग अपने और अपने परिवार तक संकुचित होकर रह गए हों लेकिन दिल के किसी कोने में देश और समाज के लिए कुछ करने की तमन्ना अभी भी जिंदा है|

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में भ्रष्टाचार किस तरह अपनी जड़ें जमा चुका है, आँकड़े इनकी खुलकर गवाही दे रहे हैं| देश में 16 जज, 86 आई ए एस, 145 सांसद और 1441 विधायकों पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं| लोकतान्त्रिक व्यवस्था की तीन महत्वपूर्ण अंग कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका पूरी तरह से भ्रष्टाचार की जद में घिर चुकी है| हालांकि यह सवाल भी महत्वपूर्ण है कि लोकतान्त्रिक व्यवस्था का विकल्प क्या होगा? बहरहाल इतना तो तय है कि अन्ना हजारे के इस आंदोलन ने देश के लोगों में एक विश्वास जगा है और वो इस उम्मीद में ज़रूर जी रहे हैं कि समाज इस भ्रष्ट व्यवस्था से छुटकारा ज़रूर मिलेगा|

गिरिजेश कुमार

4 comments:

  1. वर्तमान समय में आवश्यकता है सहज ढंग से चलने वाली व्यवस्था का जिसमे शिखंडी तत्व की मौजूदगी न हो.
    अब बहरे सुनेगे
    हम लोग उनका आपरेशन जो करने जा रहे है

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  2. सार्थक पोस्ट ......

    अन्ना जी का हम सब जी-जान से समर्थन करें ....अगर देश को स्वस्थ बनाना है तो

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  3. अगर हमे इस भ्रस्टाचार को समाप्त करना है तो ..अन्ना हजारे जी का पूरा समर्थन करना होगा .. भ्रस्ट होती राजनीत को सुधारने का एक यही रास्ता हमारे पास बचा है

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  4. आज देश में वही सांसद और विधायक है जो अनपढ़ और ग्वार है तो उनसे कैसे ऊमिद की जा सकती वह सही कानून बना सके!! एक IPS,IAS,IFS ENGG,DOC...बनने के लिये कड़ी मेहनत करनी पर्ति है पर नेता बनने के लिये नहीं !!
    यह मेरा विचार है .........
    गरिजेश आपने आलेख बहुत अच्छा लिखा है!!

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