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Wednesday, January 20, 2010

telangana issue

तेलंगाना को अलग राज्य बनाने को लेकर आँध्रप्रदेश सहित पुरे देश में राजनितिक भूचाल आया हुआ है,लेकिन अलग राज्य बनाने से जो लोग यह सोचते हैं की लोगों की समस्याएँ कम हो जाएगी वह बिलकुल ही निराधार है |मैं समझ नहीं पा रहा हूँ की आखिर देश को टुकड़ों में बांटकर हम कितने खुशहाल रह सकते हैं और क्या विकास के लिए यही एक रास्ता है?देश को छोटे -छोटे भाग में विभक्त कर दिया जाये |असलियत तो यही है की सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए कुछ नेता देश की एकता और अखंडता को दाँव पर लगाने से नहीं चुकते| अगर सर उठाकर देखा जाये तो देश के अन्दर भूख ,गरीबी ,बेरोजगारी ,मंहगाई जैसे मुद्दे मुन्हबाये खड़ी है इस तरफ किसी की निगाहें नहीं जाती|लोग भूख से मर रहे हैं ,भ्रस्टाचार पुरे देश में अपना पों पसर रहा है इसे दूर करने की जरुरत कोई महसूस नहीं करता ,शासन सत्ता में बैठे लोग अपनी कुर्सी बचाने के कोशिश करते रहते हैं तो विपक्ष कुर्सी हथियाने के फेर में रहता है,और इन सब के बीच दब जाती है उन करोड़ों लोगो की आवाज जो इन लोगों को अपना नेता मानकर संसद में भेजता है| अगर हम इससे पहले बने राज्यों पर नजर डालें तो वो सारे वादे अधूरी मिलेंगी जिनके लिए इन्हें अलग करने की मांग उठी थी|चाहे वह झारखण्ड हो ,छत्तीसगढ़ हो या उत्तरांचल किसी का भी विकास नहीं हुआ और अगर विकास हुआ तो उन नेताओं का जिन्होंने इसे अलग करने की मांग उठाई थी|विकास हुआ मधु कोड़ा का जिसे लोगों ने राज्य के विकास के लिए चुनकर भेजा था,क्या कोई बता सकता है की झारखण्ड के उन आदिवासियों का कितना विकास हुआ जो अभी भी जानवरों की तरह रह रहे हैं|और न सिर्फ झारखण्ड बल्कि पुरे भारत के किसी भी राज्य के बारे में यह नहीं कहा जा सकता|बिहार से झारखण्ड भी विकास और आदिवासियों की समस्या की मांग को लेकर अलग हुआ था लेकिन आज हकीकत हमारे सामने है| -- जबकि होना तो यह चाहिए था की देश की सारी राजनितिक पार्टियाँ एक साथ बैठकर देश को अपनी गिरफ्त में जकड लेने वाले मुद्दों को लेकर विचार विमर्श करती और उसके बाद सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया जाता जिससे सरकार,पार्टी सहित पुरे देश का भला होता|सरकार को चाहिए की वह अलग राज्य से सम्बंधित दिशा निर्देश जारी करे ताकि फिर कभी तेलंगाना जसी आग न भड़क सके |

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