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Wednesday, August 4, 2010

राष्ट्रमंडल खेल खतरे में

दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र आज किस तरह भ्रष्टाचार की जंजीरों में जकडा हुआ है इसका ताज़ा उदाहरण राष्ट्रमंडल खेलों में देखने में सामने आ रहा है| जहाँ बात तैयारियों की होनी चाहिए,जहाँ विचार इसपर होना चाहिए की भारत कितना मेडल जीत पायेगा? वहाँ बात भ्रष्टाचार पर हो रही है, सवाल ये उठाये जा रहे हैं कि कितने का घोटाला हुआ? कभी- कभी हमें खुद पर शर्म आती है कि हम इतने खुदगर्ज़ हैं कि अपने निजी स्वार्थ की पूर्ति हेतु देश की संप्रभुता के साथ भी खिलवाड़ करने से नहीं चुकते| चंद कागज के नोटों की लालच में हम अपना ईमान,धर्म बेच देते हैं|

राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारी पर जितना खर्च किया गया उतना अगर देश की मूलभूत सुविधाओं पर खर्च किया जाता तो शायद इस देश का विकास ज़रूर हो जाता| इतना खर्च कहाँ तक सही है यह विवाद का विषय हो सकता है,लेकिन अभी यह समय नहीं है कि हम खर्च पर सवाल उठायें| लेकिन जिस उद्देश्य से पैसा खर्च किया गया उसे ज़रूर पूरा होना चाहिए| राष्ट्रमंडल खेल हमारे देश के लिए इज्ज़त कीबात है तो फिर क्यों कुछ लोग इसपर इस पर कालिख पोत रहे है? उपभोक्तावादी संस्कृति और बाजारवादी सोच ने इस देश के लोगों को इतना जकड लिया है कि देश और समाज की कोई फ़िक्र ही नहीं है|

अब जबकि नवम्बर में राष्ट्रमंडल खेल शुरू होने जा रहा है,इस समय भ्रष्टाचार का इतना बड़ा मामला उजागर होना न सिर्फ विश्व में भारत के प्रति गलत मेसेज जायेगा बल्कि इससे भारत की छवि भी धूमिल होगी| एक लोकतांत्रिक देश में लोकतांत्रिक प्रक्रिया से चुने हुए सरकार का दायित्व बनता है कि वह देश के हित में हुए कार्य से जनता को अवगत कराये और अगर उस पैसे का गलत उपयोग किया गया तो उसकी भी नैतिक जिम्मेवारी लेते हुए जनता को सच्चाई से अवगत कराये| लेकिन पूंजीपतियों के इशारे पर चलने वाली सरकार क्या इस बात का ज़वाब देगी?

2 comments:

  1. बिलकुल ठीक बात कही है आपने, आपसे सहमत हूँ

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  2. @voice of youths जी

    मैं आपको हम सबके साझा ब्लॉग का member और follower बनने के लिए सादर आमंत्रित करता हूँ,

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    धन्यवाद

    महक

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