पिछले दिनों बिहार के लक्खीसराय जिले में हुए पुलिस-नक्सली और उसमे ज़वानों की मौत की खबर सुनकर एक बार फिर दिल दर्द से कराह उठा| विचारधारा के नाम पर निर्दोष ज़वानों की हत्या एक तरफ जहाँ नक्सलियों के उद्देश्य पर प्रश्नचिन्ह लगाती है वहीँ किसी भी सभ्य समाज में इसे जायज़ नहीं ठहराया जा सकता| वहीँ हम यह नहीं समझ पाते कि सरकार और तमाम अमनपसंद लोगों के लाख प्रयास के बावजूद आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़े खतरे पर काबू क्यों नहीं हो रहा है? सफल क्रांति कर पूरे दुनिया को भौंचक्क कर देने वाले महान लेनिन और मार्क्स जैसे लोगों ने क्या कभी निर्दोषों की हत्या को जायज़ ठहराया था? जिन लोगों की विचारधारा को हथियार मानकर ये लोग लड़ रहे हैं उसका औचित्य क्या है?
चंद घंटो की लड़ाई और कई लाशें फिर वही चीत्कार की करुण दास्ताँ| हर नक्सली हमले के बाद की यही स्थिति होती है जिसको देखकर किसी भी व्यक्ति का ह्रदय विचलित हो उठता है|
नक्सलियों के इस करतूत से न सिर्फ हम आक्रोशित हैं बल्कि उद्वेलित भी हैं और साथ ही साथ दिग्भ्रमित हैं| आखिर कब तक निर्दोष जवान मौत को गले लगते रहेंगे? जल, जंगल और ज़मीन नहीं छीनने देंगे का नारा देने वाले नक्सली जिंदगी और ज़वान छीनने पर उतारू हैं| इस दुनिया का हर धर्मग्रन्थ का सार एक ही है, हम इंसान हैं और इंसानियत की रक्षा हमारा धर्म है| लेकिन नक्सली इस इंसानियत के धर्म को ही पैरों तले रोंदने का काम कर रहे हैं|
यह दीगर बात है कि यहाँ समस्याएं हैं, और व्यवस्था परिवर्तन उसका हल हो सकता है लेकिन हमारा रास्ता क्या हिंसा का होना चाहिए? यह आंदोलन निश्चित ही अन्याय के खिलाफ शुरू की गई थी लेकिन आज इसका उद्देश्य सिर्फ अशांति फैलना रह गया है| इसको आगे ले जाने की जिम्मेवारी उनकी थी जिनका विचारों से गहरा नाता था| लेकिन अफ़सोस कि लोगों ने निजी स्वार्थ को ज्यादा तरजीह दी|
आज हम उस हालात में पहुँच गए हैं जहाँ इस समस्या का हल निकालना ज़रुरी हो गया है| इसके लिए प्रशासनिक तंत्र को निहायत ही मज़बूत भूमिका नभानी होगी| हर बार सवाल संसाधनों की कमी का उठता है जिसके बिना शायद हम ये लड़ाई नहीं लड़ सकते| इसलिए ज़रूरत इस बात कि है विचारधारा की आड़ में निर्दोष जवानों की हत्या पर रोक लगनी चाहिए| क्योंकि वो ज़वान भी परिवार और पेट के लिए बन्दूक उठाने पर मजबूर हैं| इस हिंसा और मारकाट की लड़ाई पर तत्काल रोक लगनी चाहिए ताकि मानव सभ्यता पर फिर काला धब्बा न लगने पाए|
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