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Wednesday, September 15, 2010

हिंदी क्यों है उपेक्षित?

भारतीय इतिहास के हर पन्ने को अगर फिर से पलटाया जाये तो हर साल ‘हिंदी दिवस’ के अवसर पर हिंदी को राजभाषा बनाने के संकल्प मिल जायेंगे| हिंदी के विकास की ज़रूरत पर बड़े बड़े वक्तव्य मिल जायेंगे|इसपर आयोजित सेमिनारों की लंबी फेहरिस्त मिल जायगी| लेकिन हर बार परिणाम सिफ़र ही रहता है| आखिर चूक कहाँ रह जाती है?

हमारी मातृभाषा हिंदी है लेकिन अफ़सोस कि यह अपने ही देश में अपने पहचान के लिए तरस रही है| जिस देश की मातृभाषा ही हिंदी हो उस देश में हिंदी दिवस मनाने की जरूरत क्यों पड़ गयी? ज़वाब साफ़ है हमने खुद को इतना विकसित समझ लिया कि गिरेबान में झाँकने की कोशिश ही नहीं की| आज स्थिति यह है कि जिन लोगों पर हिंदी को बढ़ावा देने की ज़िम्मेदारी थी उन्हें खुद हिंदी बोलने में शर्म आती है| आखिर जिम्मेदार कौन है? हमारी मानसिकता में अंग्रेजी इस तरह से घुल गई है कि हम अपनी मातृभाषा को भी दरकिनार कर देते हैं| यह सच है कि हमें हिंदी के साथ साथ दूसरी भाषाओँ कि भी जानकारी रखनी चाहिए लेकिन क्या इसके लिए हम मातृभाषा से मजाक कर सकते हैं?

आज देश की संसद से लेकर विधानसभाओं में भी अंग्रेजी ही बोली जाती है| हिंदी में शपथ लेने पर दुर्व्यवहार किया जाता है| इस हालत में हिंदी को बढ़ावा देने के लिए संकल्प की ख़बरें पढकर हास्यास्पद लगता है| अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या सच में कभी हिंदी अपना सम्मान पा सकेगी? इसके लिए ज़रुरी है कि हम खुद में बदलाव लायें| और अपनी मातृभाषा की रक्षा के लिए आगे आयें| तभी हम सफल हो पाएंगे|

3 comments:

  1. हिन्दुस्तान मैं ऐसे बहुत से दिवस माने जाते हैं, जिनका कोई मतलब नहीं होता. या यह कह लो मतलब तो होता है, लेकिन हमको सिर्फ दिवस मनाना है, करना कुछ नहीं. हिंदी दिवस हर साल होता है और हिंदी के लिए इस देश मैं अब कोई जगह नहीं.
    आप अगर हिंदी जानते हैं और इंग्लिश कम जानते हैं, तो इस देश मैं ही नौकरी नहीं मिलती या बड़ी मुश्किल से मिलती है. लगता ऐसा है यह हिंदी किसी और देश की बोली है और हिंदी भाषी किसी दूसरे देश के नागरिक. गुलामी की शायद आदत पड गयी है, इसलिए हिंदी बोलनेमें शर्म और इंग्लिश बोलने मैं गर्व महसूस होता है.

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  2. ये बात तो सर्वमान्य है की हमारे ही देश में हमारी मातृभाषा का अपमान हो रहा है.
    हम दूसरे देशों से अच्छी चीज़ें ग्रहण करने की जो मुखोटा पहने हैं उसे फेकना हमारे लिए सबसे ज़रूरी है. आज ज़रूरत है की हम अपने ज़रूरतों के लिए अपने ही ताकतों की सहायता लें ताकि उनका विस्तार हो सके. चाहे वो हिंदी भाषा हो या संविधान.

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  3. @ujjwal,"हम दूसरे देशों से अच्छी चीज़ें ग्रहण करने की जो मुखोटा पहने हैं उसे फेकना हमारे लिए सबसे ज़रूरी है" सहमत नहीं हूँ मैं तुमसे|क्यों नहीं लेनी चाहिए अच्छी चीज़ें|

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