किसी भी सभ्य समाज में हत्या जैसे जघन्य अपराध को स्वीकार नहीं किया जा सकता लेकिन जब कोई अपनी मर्यादा भूलकर समाज के द्वारा बनाये गए नियमों को ज़बरदस्ती तोड़ता है और अपने झूठे अस्तित्व का रौब दिखाकर अपने आप को दुनिया की नज़रों में पाक साफ़ दिखाने की कोशिश करता है तो उस आम आदमी के पास आखिर क्या रास्ता बचता है जो इसका शिकार है? बिहार के पूर्णिया के विधायक राजकिशोर केसरी की हत्या भले ही सभ्य समाज के उसूलों के खिलाफ हो लेकिन यह एक मजबूर महिला का अपने स्वाभिमान की रक्षा में उठाया गया सही कदम है| लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि उस महिला के साथ क्या न्याय हो पायेगा? (उसी विधान सभा क्षेत्र की एक महिला रूपम पाठक ने ४ जनवरी को विधायक को उनके आवास पर चाकू से हमला कर हत्या कर दी थी| महिला ने विधायक पर यौन शोषण का आरोप लगाया था जिसे सत्ता और पैसे के बल पर विधायक ने दबा दिया| उसके बाद प्रतिशोध में उस महिला ने ये कदम उठाया|)उन परिस्थितियों में यह सवाल और भी जायज़ लगता है जब शासन सत्ता में बैठे लोग पक्षपात पूर्ण रवैया अपनाते हैं| एक लोकतान्त्रिक देश में लोकतान्त्रिक विधि से निर्वाचित सरकार जब दोहरी नीति अपनाने लगे तो प्रजातंत्र की साख पर ही प्रश्नचिन्ह लगता है| माननीय उपमुख्यमंत्री ने यह कैसे तय कर दिया कि विधायक दोषी नहीं हैं? ये नितीश सरकार की असली परीक्षा की घडी है| जहाँ उन्हें यह तय करना होगा कि वो किसके साथ रहेंगे? श्री सुशील कुमार मोदी से मैं एक और सवाल करना चाहूँगा कि अगर राजकिशोर केसरी उनकी सरकार में शामिल पार्टियों के विधायक न रहते तो क्या तब भी वो यही बयान देते?
वक्त इस घटना की निष्पक्ष जांच की मांग कर रहा है| और वर्तमान में प्रशासनिक अधिकारियों और सरकार के रवैये से यह साफ़ हो चूका है कि रूपम पाठक को इन्साफ नहीं मिलेगा| इसलिए इसकी जांच किसी निष्पक्ष जांच एजेंसी से होनी चाहिए|
दूसरी तरफ यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि इस घटना को अंजाम देने वाला कोई पेशेवर अपराधी नहीं था बल्कि उसके ऊपर समाज को शिक्षित करने की ज़िम्मेदारी थी| तो फिर ऐसी कौन सी परिस्थितियाँ थी जिसने उसे अपराधी बनने को मजबूर किया? भारतीय नारी की मिसाल पुरे विश्व में दी जाती है लेकिन वही नारी जब रणचंडी की भूमिका में आये तो मतलब साफ़ है कि कहीं न कहीं उसके आत्मसम्मान और स्वाभिमान को ठेस पहुंची है| ये अलग बात है कि उसने विरोध का रास्ता गलत अख्तियार कर लिया|
किसी भी लोकतान्त्रिक व्यवस्था में जनप्रतिनिधि का पद सम्मानीय होता है और समाज के विकास की प्राथमिक ज़िम्मेदारी भी उनके ही ऊपर होती है| एक जनप्रतिनिधि होने के नाते उनका भी कर्तव्य होता है कि वो जनता की भावनाओं के साथ खिलवाड़ न करें| लेकिन अफ़सोस कि राजकिशोर केसरी ने इसका ख्याल नही रखा| सच को चाहकर भी छुपाया नहीं जा सकता| न्याय में देरी अन्याय है| और यही वो चीज़ है जो किसी आम आदमी को अपराध करने पर मजबूर करता है|
बहरहाल ये घटना हमारे समाज को तो झकझोरती ही है साथ ही साथ यह सरकार और उसके दावों की नाकामी की ओर भी संकेत करती है जिसमे महिला सशक्तिकरण और महिलाओं को आज़ादी देने की बातें की जाती है और दूसरी तरफ सरकार में शामिल मंत्री, विधायक ही उसका यौन शोषण करते हैं| हिंसा या हत्या किसी समस्या का समाधान नहीं है लेकिन एक चेतावनी ज़रूर है| समाज में थोड़ी सी भी रूचि रखनेवाले तमाम लोगों को जो सच और सत्य की कीमत जानते हैं इस मामले में खुलकर एक पक्ष लेना चाहिए|
गिरिजेश कुमार
एडवांटेज मीडिया एकेडेमी, पटना
मो 09631829853
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