महान क्रन्तिकारी शहीद भगत सिंह ने इन्कलाब को परिभाषित करते हुए कहा था- “बम और पिस्तौल कभी इन्कलाब नहीं लाते, इन्कलाब की तलवार तो विचारों की शान पर तेज होती है|” और विचारें कभी मरती नहीं| सदियों पहले कही गयी यह बात आज भी कितनी प्रासंगिक है इसका ताज़ा उदाहरण मिस्र में देखने को मिल रहा है| ३० सालों के शासन से उब चुके वहाँ की जनता ने अब आर पार की लड़ाई का फैसला कर लिया है|
जन संचार माध्यमों से जो ख़बरें मिल रही हैं उसे देखकर जनसमूह की ताकत का अंदाज़ा लगाया जा सकता है| मिस्र के हालात पूरी दुनिया के लिए सबक है| और यह साबित करती है कि जनशक्ति के सामने कोई भी ताकत टिक नहीं सकती| लेकिन बड़ा सवाल ये है कि इस घटना से भारत का क्या ताल्लुक हो सकता है? ताल्लुक ज़रूर है| किसी भी देश में लोकतंत्र का होना बड़े गर्व की बात होती है लेकिन इसकी कमजोरियों को नजरंदाज करना उतने ही बड़े शर्म की बात है और दुर्भाग्य से हमारे देश में यही हो रहा है| देश में होने वाले ज्यादातर अपराध उन चारदीवारियों के अंदर होते हैं जिसके अंदर जाने के लिए आम आदमी को इज़ाज़त नहीं है और जिन्हें हम ‘सरकार’ कहते हैं| इन अपराधों में भ्रष्टाचार से लेकर घूसखोरी और नियमों के उल्लघन से लेकर निजी स्वार्थ की पूर्ति और उसके लिए देशहित की बलि तक शामिल है|
मध्य पूर्व में चल रहे इस आंदोलन में एक और बात गौर करने वाली है वह यह कि इसमें ज्यादातर युवाओं और छात्रों की संख्या है| यहां यह सवाल लाजिमी है कि क्या हमें इनसे सीख नहीं लेनी चाहिए? देश में बड़े पैमाने पर फैले समस्याओं से आखिर हम कब उबेंगे? हमारे यहां तो ६० सालों से लोकतंत्र की आड़ में लोगों का शोषण हो रहा है| हिंसा, उपद्रव या अशांति किसी समस्या का सामाधान नहीं है लेकिन जनांदोलन भी ज़रुरी है| ताकि सरकार को जनता की ताकत का अंदाज़ा लग सके और और उन्हें यह आभास हो सके जनशक्ति किसी भी सैन्यशक्ति से बढ़कर है| इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा हुआ है|
हम उम्मीद करते हैं इन आंदोलनों से शासक वर्ग कुछ सबक ज़रूर लेगा|
No comments:
Post a Comment