हालाँकि यह भी सच है कि ऐसे जलजलों के बाद अंगुली मनुष्य औरउसकी कार्यशैली पर उठती है| आसमान को छूने की आकांक्षा लिए मनुष्य ने सीमाओं को लांघने में कोई कसर नहीं छोड़ी है| आज डर और दर्द का जो आलम जापान में दिखाई दे रहा है उसकी भयावहता का चित्र देखकर इंसान की रूह कांप उठती है| आँखों में आंसू के सूखने और अपनों की तलाश में ना जाने कितने दिन लगेंगे? प्रकृति की रुष्टता और विकराल रूप से हम सभी वाकिफ हैं लेकिन इसे समझने के प्रयास नाकाफी हैं| एक प्रकृति की सुंदरता पृथ्वी को दूसरे ग्रहों से अलग बनाती है तो दूसरी तरफ हम मुनाफा अर्जित करने के लिए इसी सुंदरता से खिलवाड़ कर
पर्यावरणीय नियमों का उल्लंघन कर खुली चुनौती दे रहे हैं| लेकिन सवाल अब भी वही क्या हम अभी भी सीख लेंगे? इस सुनामी का असर भारत पर नही होगा यह सोच कर हम खुश ज़रूर हो सकते हैं लेकिन बहुत दिनों तक नही?
दरअसल हमने प्राकृतिक संसाधनों का इतना असीमित दोहन किया है और कर रहे हैं कि हमें इससे प्रकृति को होने वाले नुकसान की ओर ध्यान देना उचित ही नहीं समझा| और जब ऐसी अनअपेक्षाकृत कोई प्राकृतिक आपदा आती है तो बहस कर, प्रकृति को बचाने की नसीहत देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेते हैं| जापान की यह तबाही भी कुछ दिन लोगों के दिमाग में रहेगी, समाचार चैनलों के लिए टाइम पास करने का साधन बनेगी और फिर सबकुछ ऐसा ही चलता रहेगा| पूरी पृथ्वी पर मंडरा रहे इस संभावित खतरे के बावजूद हमारी आंखे उसे देख नहीं पा रही हैं| भौतिकवादी संस्कृति के इस चंद लम्हों की खुशी के लिए हम अपने आने वाली पीढ़ियों का भविष्य दाँव पर लगा रहे हैं| जब जापान जैसे विकसित देश के लिए, जो भूकंप के मुहाने पर ही पला, बढ़ा, यह इतनी बड़ी विपदा के रूप में आ सकता है जिसके आगे उसकी सारी ताकत क्षीण पड़ गयी तो भारत या दूसरे विकासशील देशों की क्या हालात होगी इसकी कल्पना करना भी मुश्किल है?
हालांकि यह समय सवाल उठाने का नहीं है और ना ही दोष बताने का| हमारी एकजुटता ही ऐसी विपदाओं से हमें बचा सकती है| जो लोग प्रभावित इलाकों में फंसे हुए हैं वह सुरक्षित बाहर निकलेंगे इसकी हम आशा करते हैं|
गिरिजेश कुमार
जापान में ढाया कुदरत ने कहर .....
ReplyDeleteसहमत हूं आपसे.
इस विषय के हर पक्ष पर सोचना होगा...
इस तबाही को समझो, यह तबाही कुछ कहती है....
ReplyDeleteबहुत संवेदनशील चिंतन ...
इस महत्वपूर्ण प्रस्तुति के लिए आपको हार्दिक बधाई।
bahut dukhad ghatna.
ReplyDeleteaapka lekh vicharniy hai......poori samvedna nihit hai.
यह तबाही बहुत मायने रखती है ....और हमें निश्चित तौर पर इससे सबक लेने की बहुत ज़रूरत है .
ReplyDeleteसंवेदनशील चिंतन.. चेतावनी है बाकी दुनिया के लिए. इस तबाही से सबक लेने की जरूरत है.
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इसी सन्दर्भ में मेरी पोस्ट देखें : "कल अपनी भी बारी है" ........ संध्या शर्मा
http://sandhyakavyadhara.blogspot.com/2011/03/blog-post_14.html