बिहार में सुशासन की सरकार के अफसर कितने संवेदन शील और सक्रिय हैं इसका ताज़ा उदाहरण है एम् के कॉलेज सीतामढ़ी के सौ छात्रों का इंटरमीडिएट की परीक्षा से वंचित रहना| बिहार सरकार शिक्षा में बेहतरी का दावा करती है और राज्य को एक शिक्षित प्रदेश की श्रेंणी में लाना चाहती है| लेकिन पता नहीं राज्य सरकार ने शिक्षित प्रदेश का मतलब क्या निकाल रखा है? घटनाक्रम यह है कि बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के अध्यक्ष और सचिव की गलती का खामियाजा उन सौ छात्रों को भुगतना पड़ रहा है जिन्होंने पुरे साल मेहनत की और अंतिम समय में परीक्षा से वंचित रह गए| गौर करने वाली बात यह भी है कि तीन मार्च को पटना उच्च न्यायालय ने एम् के कॉलेज के सभी छात्रों का ओ एम् आर(ऑप्टिकल मार्क रीडर) स्वीकार करने का आदेश दिया था ताकि आठ मार्च से शुरू होने वाली परीक्षा में छात्र भाग ले सकें लेकिन समिति ने यह फॉर्म जमा ही नहीं लिया| अब अगर छात्र आक्रोशित होकर तोड़फोड़ करते हैं तो दोष किसका है? क्या छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ करना का हक समिति को है?
यह मामला अब कोर्ट में है| कोर्ट ने अधिकारीयों को कारण बताओ नोटिस जारी किया है| माना कि छात्रों के साथ न्याय करेगा कोर्ट लेकिन इस वजह से छात्रों को जो मानसिक परेशानी झेलनी पड़ी और उनका १ साल बर्बाद हुआ उसकी भरपाई कैसे होगी? सरकार इस मामले पर चुप है लेकिन कोई उन छात्रों और उनके माँ बाप से पूछे कि उनपर क्या बीत रही है जिन्होंने एक -एक रुपया जोड़कर परीक्षा का फॉर्म भरा था और भूखे रहकर ट्यूशन की फीस दी थी| मजदूरी कर जिन बच्चों का शिक्षित करने का जिम्मा उनके माँ बाप ने उठया उनके सपनों की रौंदने की ज़िम्मेदारी क्या समिति लेगी ? लेकिन अफ़सोस कि हम सिर्फ़ आश्चर्य व्यक्त कर सकते हैं| काश! यह बात ए सी कारों में बैठे अफसरों, जनता के पैसों पर राज करने वाले सरकारों और नेताओं को समझ में आ पाती?
गिरिजेश कुमार
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