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Friday, February 12, 2010

Education system responcible

शिक्षा जगत शर्मसार पिछले ४ दिनों से विभिन्न कोचिंग संस्थाओं के खिलाफ छात्र हिंसक आन्दोलन कर रहे हैं |आखिर छात्र आन्दोलन क्यों कर रहे हैं ?क्या उनका उग्र रूप जायज़ है ?अगर हम सही पड़ताल करें तो ज़वाब अपने आप ही मिल जायेगा | कोचिंग संस्थानों के द्वारा ज्यादा पैसा लेना और समय पर कोर्से पूरा न करना आम बात हो गयी है |छात्र अगर आज सड़क पर उतरे हैं तो कहीं न कही हमारी शिक्षा व्यवस्था दोषी है जिसने उसे उग्र होने के लिए मजबूर किया | सवाल उठता है क़ि छात्र आखिर प्राइवेट संन्थानो में क्यों जाते हैं ?अगर हम बिहार के तमाम सरकारी स्कूलों और कॉलेजों का जायजा लें तो यह सपष्ट तौर पर समझ में आ जायेगा|वहां पढाई नहीं होती इसलिए तो छात्र पढाई के लिए निजी संस्थानों में जाते हैं |इस घटना से जहाँ प्रबुद्ध समाज आहत है वहीँ शिक्षा जगत शर्मसार|यहाँ यह सवाल यह भी उठता है क़ि ऐसी घटना दोवारा न हो इसके लिए क्या प्रयास हो रहे हैं ? पुलिस प्रशासन क़ि बर्बरता का शिकार हर बार छात्र बनते हैं ,|शिक्षा स्वस्थ्य सरकार क़ि जिम्मेवारी होती है |इस देश के महापुरुषों ने भी शिक्षा को सर्व सुलभ और मुफ्त करने क़ि मांग क़ि थी |प्रेमचंद से लेकर गाँधी और तिलक क़ि भी यही इक्षा थी लेकिन पूंजीवादी समाज ने शिक्षा को मनुष्य निर्माण के लिए न बनाकर व्यापर में तब्दील कर दिया |हमारे शिक्षा व्यवस्था क़ि सबसे बड़ी खामी ये है क़ि हम अभी भी १८३५ क़ि मैकाले क़ि शिक्षा पद्धति को लेकर चल रहे हैं जिसका एकमात्र उद्देश्य था क्लर्क तैयार करना |आज यह अपना ऐसा वीभत्स रूप लेकर हमारे सामने खड़ा है क़ि हम कुछ भी नहीं कर पाते|एक तरफ जहाँ योग्य लोगों क़ि कमी है तो दूसरी ओर बेरोजगारों क़ि फ़ौज खड़ी है|इस असमानता से समाज में जहाँ प्रतिस्पर्धाएं बढ़ रही हैं वहीँ एक से एक हसीन सपने दिखाकर कुकुरमुत्ते क़ि तरह कोचिंग संसथान खुल रहे हैं |जिन्हें छात्रों के भविष्य से कोई मतलब नहीं है ,उन्हें अगर मतलब है तो सिर्फ फीस से | प्राचीन काल में शिक्षा आश्रम में दी जाती थी ,विद्यार्थी आश्रम में रहकर विद्या ग्रहण करते थे |इससे उनके अन्दर एक संस्कार आता था |समाज के लिए एक आदर होता था |वहीँ वर्तमान शिक्षा व्यवस्था ऐसी निकम्मी हो चुकी है वह छात्रों के अन्दर संस्कार तो दूर सही जानकारी भी नहीं दे पाते |नतीजा आज हमारे सामने है |पिछले ३ दिनों से आन्दोलन और नियंत्रण के नाम पर नंगा नांच पूरा देश देख रहा है |देश क़ि राजनीती इतने गर्त में जा चुकी है जहाँ से बाहर निकलना उसके लिए संभव नहीं है |और इसे खाद पानी देश के राजनेता उपलब्ध करा रहे हैं जो अपने आप को जनता का सबसे बड़ा हितैषी बताते हैं |जब जनता भूखे मरती है ,ठण्ड में कम्बल के बिना रात गुजारती है तो इनका ह्रदय दर्द से विचलित नहीं होता लेकिन जैसे ही कोई घटना घटती है ,सरकार और विपक्ष आमने सामने आजाते हैं | महात्मा गाँधी ने कहा था अगर हम सीखना चाहें तो हमारी हर भूल हमें कुछ शिक्षा दे जाती है |लेकिन उन्होंने भी ये कहा क़ि अगर हम सीखना चाहें तो |इस घटना के बाद दोबारा ऐसी घटना न हो इसके लिए ज़रूरी है क़ि एक ऐसा मंच बने जो छात्रों क़ि बातों को सुन सके |सरकारी शिक्षण संस्थानों में पठन पाठन का माहोल कायम किया जाये |प्रशासन असमाजिक तत्वों से निबटे न क़ि छात्रों से |अन्यथा ऐसी घटनाएँ बार बार होती रहेगी |लाख टके का सवाल यह है क्या इस घटना से हम कोई सीख लेंगे ?

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