पूरी दुनिया को जिस भगवान महावीर ने इंसानियत और मानवता का पाठ पढाया उन्ही की जन्मभूमि वैशाली में कल मानवता शर्मसार हुई| पूरे गाँव के सामने जिस तरह से लड़के की पिटाई की गई वह अभी भी यह दर्शाता है कि भले ही हम चीख-चीख कर आधुनिकता की खाल ओढने का दावा करें लेकिन हमारी मानसिकता उसी पाशविक विचारधाराओं पर आधारित है जब मानव समाज पर दास प्रथा नामक कोढ़ का राज कायम था| हम खुद को अभी भी झूठी शान और रुढिवादी मानसिकता के चंगुल से बाहर नहीं निकाल पाए हैं|
किसी भी सभ्य समाज में दुष्कर्म जैसे कुकृत्य और इसके प्रयास या गाँव की महिलाओं,लड़कियों के साथ दुर्व्यवहार को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता, लेकिन क्या इसके लिए हम मानवता की हत्या कर सकते हैं? क्या इंसानियत के सारी सीमाओं को तोड़कर किसी समाज को भयमुक्त बनाया जा सकता है, जहाँ फिर कोई राजेश पैदा न हो? यह कैसी पंचायत है जो किसी की जान की कीमत पर न्याय का झूठा दंभ भरती है? महान साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद ने तो ‘पंच परमेश्वर’ में पंचो को खुदा का बन्दा कहा था जिसके मुहं से हमेशा सच्चाई निकलती है,जों दूध का दूध और पानी का पानी कर दे| लेकिन अगर आज वो जिन्दा होते तो शायद उन्हें पंच की नयी परिभाषा गढनी पड़ती|
सवाल उस सरकार और उसके तंत्र पर भी उठता है जों सुशासन का दंभ भर रही है| बताया ये जा रहा है कि जिस जगह ये घटना हो रही थी वहाँ से सिर्फ १ मील की दुरी पर ही थाना था लेकिन थाने को खबर ही नहीं मिली| प्रशासन और प्रशासनिक तंत्र सवालों के घेरे में तभी आता है जब वह अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ने का प्रयास करता है| जिस जगह पर पूरे देश की मीडिया पहुँच गई उस जगह पर पुलिस नहीं पहुँच पाई जों उसकी नाकामी की गवाही देता है|हम समझ नहीं पा रहे कि आखिर इस व्यवस्था को क्या हो गया है? क्या वर्तमान सामाजिक व्यवस्था कोमा के उस दौर से गुजर रही जहाँ शरीर जिंदा तो रहता है लेकिन कुछ काम नहीं कर पाता? इस हालत को देखकर तो यही कहा जा सकता है|
ह्रदय क्षुब्ध है जुबान बंद| लेकिन सवाल यह है कि आखिर कबतक यूँ ही सजा देने के नाम पर मानवता की हत्या होती रहेगी? इंसानियत का क़त्ल होता रहेगा? वक्त की नजाकत यह सवाल उठा रही है कि जिस धरती पर भगत सिंह,सुभाष चंद्र बोस,चंद्रशेखर आज़ाद जैसे लोग पैदा हुए,जिन्होंने अन्याय और अत्याचार के खिलाफ ब्रिटिश साम्राज्य से लड़ाई लड़ी उसी देश में चंद मुठ्ठीभर लोग कैसे अपना राज कायम कर पा रहे हैं? उन्ही युवाओं के सामने यह आज यक्ष प्रश्न बनकर खड़ा है कि आखिर कबतक चुपचाप सब सहते रहोगे? आज नहीं तो कल इसका ज़वाब ढूँढना ही पड़ेगा| लेकिन डर यह है कि कहीं ऐसा न हो कि ज़वाब तब मिले जब हमारे हाथ से सबकुछ इतना दूर चला जाए कि सिर्फ पछताने के सिवा और कोई चारा न हो|
ghatna par pratikriya dete samay thode me yadi ghatna ka bayan kar denge to aur behtar hoga.aapki yah tippani aisi kisi ghatna par hai jise padhne vale nahin jante.
ReplyDeleteआपका बहुत- बहुत धन्यवाद इस ओर मेरा ध्यान खींचने के लिए,घटना का जिक्र नहीं है लेकिन लड़के को पीटने वाली बात लिखी है|खैर आगे से ध्यान ज़रूर रहेगा|
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