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Monday, September 20, 2010

...और मौत से हार गई जिंदगी!

...और मौत से हार गई जिंदगी! पटना नगर निगम कर्मचारी दयानंद अपने सपनों को सदा के लिए कुर्बान कर इस दुनिया से अलविदा हो गया| पिछले दिनों नगर निगम कर्मचारी दयान्द ने आत्मदाह करने कि कोशिश कि थी जिसमे वह ५० फीसदी जल गया था| कल उसने अस्पताल में दम तोड़ दिया| अपने पीछे बहुत सारे सवालों को छोड़कर| लेकिन इस मौत कि ज़िम्मेदारी कौन लेगा? सरकार, समाज या फिर सामाजिक व्यवस्था? क्या मिले उसे? वेतन, इज्ज़त, शोहरत, इनाम में मौत ज़रूर मिली| जिस बदहाली और तंगहाली से क्षुब्ध होकर उन्होंने मौत को गले लगाया क्या इससे उनका परिवार उबार पायेगा? ये वो दयानंद है जिसे आज हम जान रहे हैं क्योंकि वह इस भ्रष्ट व्यवस्था से लड़ नहीं पाया, लेकिन इस देश में ऐसे कितने दयानंद हैं इसकी कोई जानकारी किसी के पास उपलब्ध नहीं है| हम बार बार ‘दयानंद’ शब्द उपयोग करने पर मजबूर हैं क्योंकि आज यह हमारे समाज के लिए एक उदाहरण बन गया है|

हर तरफ चुनावी माहौल और ५ साल तक लूट करने के छूट के जुगाड में तमाम राजनीतिक पार्टियां लगी हुई हैं,ऐसे में दयानंद और उसके परिवार की आवाज़ कहीं गुम हो जायेगी| कोई भी इस तरफ ध्यान शायद नहीं देगा| लेकिन इतना तो कहा ही जा सकता है कि सरकारी उदासीनता ने एक इंसान को हैवान बनने पर मजबूर कर दिया| भले ही कीमत उसने खुद चुकाई हो| जब किसी घटना से दिल आहत होता है तो असहनीय दर्द होता है| फिर चाहे दोष व्यक्ति का हो या व्यवस्था का| लेकिन पता नहीं हम, हमारी तथाकथित लोकतांत्रिक सरकार और यह व्यवस्था, दयानंद जैसे कितने लोगों कि आहुति लेगी?

2 comments:

  1. एक बेहतरीन शुरुआत , सत्य है जो आपने कहा. दयानंद तो चला गया , जो अवाल छोड़ गया उसका हल हमको ही तलाशना होगा.

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  2. सही कहा आपने ।

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