जहाँ एक तरफ़ ये हालात हैं वही दूसरी तरफ़ हमें देखने को मिलता है कि समाज में परम्परा के नाम पर कुछ चीजों ने ऐसी गहरी जड़ जमा ली है जिसे बहुत पहले ही अलविदा कह देना चाहिए था| जिसमे अंतरजातीय विवाहों का विरोध, महिलाओं के प्रति दोहरी मानसिकता, अंधविश्वास, उंच नीच का भेद, छुआछूत जैसी चीजें प्रमुख हैं|
दरअसल आगे निकलने की होड़ और दौड़ते भागते जिंदगी के बीच इन महत्वपूर्ण चीजों की तरफ ध्यान देना लोग ज़रुरी नही समझते| पश्चिम की भोगविलास वादी सभ्यता में हम इतने खो चुके हैं कि अपने पुरखों के द्वारा विरासत में सौंपी गई अपनी सभ्यता को ठुकरा दिया है| जिसका नतीजा यह हो रहा है कि आधुनिकता के नाम पर अश्लीलता बढ़ रही है और प्यार जैसे पवित्र रिश्तों को नीची निगाहों से देखा जा रहा है| उत्कृष्ट साहित्य और क्रन्तिकारी विचारधारा से वर्तमान युवा पीढ़ी दूर है| समाज और सामजिक समस्याओं के प्रति जो रूचि आज़ादी के समय युवाओं में थी, आज नहीं है| जनसंचार माध्यमों में हावी व्यापारवाद और रेवेन्यू के लिए आपत्त्तिजनक जनक चीजों को बढ़ाचढ़ाकर पेश करना भी इसके लिए जिम्मेदार हैं| समाज में उच्च स्थान रखने वाले लोग भी आगे आने से कतराते हैं| शिक्षाविद, समाजशास्त्री गणमान्य और प्रबुद्ध लोग, समाज से जुडी समस्याओं के लिए, सभ्यता और संस्कृति रूपी विरासत को बचाने के लिए आगे आये हैं, ऐसा सुनने को नहीं मिलता|
इसलिए ज़रूरत इस बात की है कि समाज के हित के लिए लोग आगे आयें, और सामाजिक सभ्यता पर मंडरा रहे इस खतरे को भांपते हुए उसे दूर करने के प्रयास किये जाएँ|
गिरिजेश कुमार
सहमत हूँ आपसे ....अन्धानुकरण की प्रवृति बढ़ रही है.....
ReplyDelete.
ReplyDeleteगिरिजेश जी ,
इस बेहतरीन , सार्थक लेख के लिए बधाई । आज वास्तव में जरूरी है अपनी विलुप्त होती सभ्यता एवं संस्कृति को बचाया जाए ।
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सार्थक लेख के लिए बधाई ।
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