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Monday, March 28, 2011

बिहार के साथ सौतेला व्यवहार क्यों?

बिहार का हक है विशेष राज्य का दर्ज़ा

यह सच है कि केन्द्र सरकार बिहार के साथ सौतेला व्यवहार करती है| चाहे वह बजट हो, आपदा से निबटने के लिए दी गई राशि हो या विकास कार्यों के लिए दिया जाने वाला अनुदान, बिहार के साथ दोहरी मानसिकता रखती है| वर्तमान में कई सालों से विशेष राज्य के दर्जे की मांग पर ऐसी ही नीति देखने को मिल रही है| जबकि यह बिहार की मांग नहीं उसका अधिकार है|

दरअसल पिछले सौ सालों में बिहार की आधारभूत संरचना के साथ खिलवाड़ करने में यहां की सरकारों ने कोई कसर नही छोड़ी है| आज सदियों से अगर बिहार पिछड़े राज्य की श्रेंणी में ही खड़ा है तो उसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेवार सरकारें हैं| व्यवस्था परिवर्तन की लहरें भी यहां से उठी लेकिन वह भी अंजाम तक ना पहुँच सका| आज कई अरसों बाद बिहार में सरकार की भूमिका समझ में आ रही है तो केन्द्र साथ नहीं दे रहा है| राजनीति की चक्की में जनता पिस रही है|

महत्वपूर्ण सवाल यह है कि आखिर केन्द्र सरकार बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने से क्यों इनकार कर रही है? केन्द्र सरकार के जो मापदंड हैं वह अपनी जगह है| परन्तु सिक्के के दूसरे पहलु पर अगर गौर किया जाये तो वह ज्यादा सच और आईने की तरह साफ़ दिखता है| गठबंधन की सरकारों को देश के विकास से कोई मतलब नहीं रह गया है| छल, प्रपंच और आम जनता को अँधेरे में रखकर अपना उल्लू सीधा करने का काम केन्द्र सरकार कर रही है| इसलिए बजट आम आदमी के हित लिए नहीं बनता और प्रधानमन्त्री घड़ियाली आंसू बहाकर यह कहते हुए नजर आते हैं कि मैं मजबूर हूँ| निजीहित,राष्ट्रहित पर भारी पड़ रहा है| कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियां स्वार्थपरता की राजनीति को बढ़ावा दे रही है| आम जनता का हित पीछे धकेल कर अपनी पार्टी का हित और वोटेबैंक को अहमियत दी जा रही है| इसलिए कांग्रेस नेतृत्व केन्द्र सरकार नहीं चाहती कि बिहार में वर्तमान एन डी ए की सरकार को यह उपलब्धि मिले|

राज सत्ता के दोहरे चरित्र से आम लोग वाकिफ हो ना हों लेकिन समझदार और शिक्षित लोगों के लिए यह बड़ी बात नहीं है| आज बिहार जिन बुनियादी सुविधाओं का अभाव झेल रहा है उससे निबटने के लिए राज्य सरकार के प्रयासों की सराहना करनी होगी| इतने गतिरोध, अवरोध और विरोध को झेलते हुए बिहार का कायाकल्प करना सीधी अंगुली से घी निकालने के समान था, लेकिन वर्तमान सरकार के दृढ़ इच्छाशक्ति के बदौलत आज बिहार एक नया मुकाम हासिल कर रहा है| इसलिए केन्द्र सरकार को भी यह चहिये कि विकास की इस गति को बरकरार रखने में सहयोग करे|

कोई भी व्यवस्था या सरकार विश्वास के बल पर ही टिकी रहती है, इस विश्वास को बनाये रखने के लिए संवाद की अहम भूमिका होती है| संवाद के गुढ़ अर्थ को समझने के लिए जागरूकता ज़रुरी है| मैं नहीं मानता कि अगर आम लोग जागरूक हो रहे हैं तो उसे निजी स्वार्थ के लिए अंधेरों के दलदल में धकेल दिया जाये| यह बात केन्द्र सरकार को भी समझनी होगी| समस्याओं का समाधान ज़रुरी होता है रास्ता महत्वपूर्ण नहीं होता| हम उम्मीद ज़रूर कर सकते हैं आने वाले दिनों में केन्द्र सरकार भी अपनी जिम्मेदारी को समझेगी और बिहार को उसका हक मिलेगा|

गिरिजेश कुमार

(प्रभात खबर में 28-03-2011 को सम्पादित अंश प्रकाशित)

Wednesday, March 23, 2011

भगत सिंह: एक शख्सियत नहीं विचारधारा

विश्व इतिहास में देश के लिए त्याग और बलिदान के प्रतीक शहीदे-ए – आजम भगत सिंह का नाम ही उनके परिचय के लिए काफी है| अंग्रेजों के साम्राज्यवादी विस्तार की नीतियों और पूंजीवादी व्यवस्था को प्रश्रय देने वालों के खिलाफ भगत सिंह एक मजबूत चट्टान के रूप में खड़े हुए थे| २३ मार्च १९३१ वह दिन था जब सारे नियम कानूनों को ताक पर रखकर भगत सिंह को साथी राजगुरु और सुखदेव के साथ फाँसी के फंदे पर लटका दिया गया था|

२८ सितम्ब १९०७ को पंजाब के लायलपुर में जन्मे भगत सिंह का पूरा परिवार ही आजादी आंदोलन के संघर्षों में सक्रिय था| इसका ही असर था कि भगत सिंह देश के महानायक बने| इस पूंजीवादी परिवेश में जहाँ हर चीज़ की कीमत तय होती है इन शहीदों के विचारों की कद्र करना हमारे देश के कर्णधार उचित नहीं समझते| जिस व्यक्ति के नाम लेते ही हजारों लोगों की आँखें नाम हो जाती हैं, उनके क्रन्तिकारी विचारों से प्रभावित होकर लाखों युवा सड़कों पर अन्याय और अत्याचार के खिलाफ आज भी उतर आते हैं उन्हें भुलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई है| हमें अफ़सोस इस बात का है कि आज जिन विचारों की देश को सबसे ज्यादा ज़रूरत थी उन्ही विचारों को जड़ से मिटने की कोशिशें हो रही हैं|

आज जबकि देश में आर्थिक असमानता दिन ब दिन बढती जा रही है, घोटाले, भ्रष्टाचार और लूट में पूरा देश लिप्त है, आपसी भेदभाव पुरे समाज को पीछे धकेल रहा है, आम लोग चाहकर भी विरोध में आवाजें नहीं उठा पाते ऐसी विपरीत परिस्थितियों में भगत सिंह और उनके साथियों की क्रन्तिकारी विचारधारा एक नई ऊर्जा प्रदान करती है अन्याय और अत्याचार के खिलाफ एकजुट होने में सहायक हो सकती है| भगत सिंह जिस साम्राज्यवादी व्यवस्था के खिलाफ लड़ते रहे आज हमारी व्यवस्था उसी साम्राज्यवाद की पिछलग्गू बन गयी है|

किसी देश की पहचान इस बात से होती है कि वह अपने देश के नायकों को किस तरह से याद करता है| भगत सिंह को प्रायः एक क्रन्तिकारी योद्धा के रूप में याद किया जाता है जबकि सच्चाइ यह भी भगत सिंह एक व्यक्ति के अलावा एक विचारधारा के तौर पर हमरे बीच उपस्थित हैं| लेकिन उनके इसी चेहरे को छुपाने की कोशिश हो रही है| आज आज़ादी के इतने सालों बाद भी उनके विचारोंं की प्रासंगिकता कायम है| समाज और देश के विकास की घरी समझ और कार्ययोजना उनके अंदर विकसित थी| उनकी जीवनी दुर्लभ दस्तावेज़ का रूप ले चुकी है सिर्फ़ और सिर्फ़ देश के शासकों के नजरिये के कारण| क्योंकि अगर भगत सिंह की विचारधारा से प्रभावित होकर लोग जागरूक होकर इस भ्रष्ट व्यवस्था के खिलाफ एकत्रित हो गए फिर ऐसी क्रांति होगी जिसे रोकना किसी भी सरकार के लिए संभव नही होगा|

भगत सिंह को याद करने की सार्थकता तभी है जब हम उनके विचारों को अमल में लायें और भारत को एक समाजवादी गणतंत्र बनाने की पहल करें|

गिरिजेश कुमार