काले परदे के पीछे भूमंडलीकरण का निःशब्द कदम धीरे-धीरे सभ्यता का प्रकाश मलिन कर जिस अंधकारमय जगत की ओर लोगों को ले जा रहा है वह चित्र देखने लायक आँख, और समझने लायक मन आज कितने लोगों में है? प्रेम जैसी सुन्दर अनुभूति को भुलाकर, चकाचौंध रोशनी के बीच शरीर का विकृत प्रदर्शन और सेक्स के मध्यम से समाज को विषाक्त बनाने की कोशिश हो रही है| इसी परिकल्पित प्रयास का ही एक नाम है,”रियलिटी शो”| जिसका मतलब है “यथार्थ का प्रदर्शन”|
क्या मनोरंजन के नाम पर शिशु के शैशव को नष्ट किया जा सकता है? हमें अफ़सोस इस बात का होता है इस चकाचौंध के बीच अभिभावक भी खो जाते हैं| संगीत, नृत्य और अभिनय के नाम पर आज बहुत सारे कार्यक्रम टेलीविज़न चैनलों पर दिखाए जा रहे हैं| शब्द और सुर का मिलन ही संगीत है यह सुननेवाले के मन में एक अनुभूति पैदा करता है| संगीत और नृत्य भाव-अभिव्यक्ति के उन्नत माध्यम माने गए हैं| लेकिन वर्तमान में प्रसारित कार्यक्रमों में उन्नत कला तो दूर सिर्फ़ विकृत मानसिकता की झलक ही दिखाई देती है| जज की कुर्सी पर बैठे हुए लोग कलाकारों का मानसिक शोषण करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ते|
ध्यान देने की बात है कि इन कार्यक्रमों से जितने भी प्रतिभावान लोगों को चुना जाता है वे बाद में कहाँ खो जाते हैं? क्या उन्हें वास्तव में कोई आधार मिलता है? ऐसा नहीं है प्रतिभावान लोग नहीं है लेकिन बाजारवाद के इस चकाचौंध में वे कहीं खो जाते है|दरअसल ऐसे कार्यकर्मों के आयोजन का उद्देश्य प्रतिभावान लोगों को ढूँढना है ही नहीं, और न ही वे इसके प्रति गंभीर हैं| बल्कि उन्हें सिर्फ़ अपने व्यापार से मतलब है|
इसलिए मनोरंजन के नाम पर ऐसे कार्यक्रमों को दिखाने की इज़ाज़त नहीं मिलनी चाहिए जिससे समाज में बेहतरी के बदले गलत चीज़ें न फैले|