
दरअसल जब ऐसी घटनाएँ घटती हैं तो यही समाज
संवेदनशील हो जाता है। चर्चाओं बहसों का एक नया दौर शुरू हो जाता है और कुछ समय के
लिए ऐसा लगता है कि एक ठोस हल इस बार ज़रूर निकलेगा लेकिन स्थिति बदलती नहीं है।
सदियों से पीछे धकेली गयी स्त्री समाज को अपनी आबरू बचाने के लिए पुरुषों का सहारा
लेना पड़ता है। आधुनिकता की चादर ओढ़े इस समाज में आधुनिकता कम फूहडता ज्यादा दिखती
है। लेकिन क्या हमारी संवेदना मर चुकी है। हम यह क्यों भूल जाते हैं कि वह लड़की
हममे से ही किसी की बहन, किसी की बेटी है?
एक और बात जो ऐसे मामलों में नजर आती है वह यह
कि ज्यादातर बदतमीज रसूख वाले घर से सम्बन्ध रखते हैं। पैसे और पॉवर का धौंस
दिखाकर सबकुछ मैनेज कर लेते हैं। यानी दोष इस व्यवस्था में भी है जहां अपराध करने
वाले जानते हैं कि ज्यादा से ज्यादा क्या हो सकता है? ऐसे में वह लड़की क्या करे या
सताई गयी लड़की के परिवार वाले क्या करे? इस सवाल का जवाब कोई देना नहीं चाहता।
दूसरी तरफ़ खुलेपन के नाम पर पुरे समाज में जिस
तरह से अश्लीलता फैलाई जा रही है वह भी ऐसी घटनाओं के लिए जिम्मेदार है। हमारी
कानून व्यवस्था और प्रशासनिक अमला इतना सुस्त है कि पहले तो अपराधी पकड़ में नहीं
आते और पकड़ में आ भी गए तो किसी को उसके
किये की सजा नहीं मिलती। नतीजा बेशर्मी की हद को पारकर सरेआम ये लफंगई करते हैं।
स्त्री देह को उपभोग की वस्तु समझने वाली हमारी
सामाजिक संरचना धीरे-धीरे सभ्यता का प्रकाश खोकर इतनी मलीन हो चुकी है कि उसे अच्छे
बुरे का भी ख्याल नहीं रहा। अपनों तक ही सीमित सोच हमें हर लड़की को नीची निगाह से
देखने को विवश करता है। इस सोच को भी बदलना ज़रुरी है। हमारे तथाकथित विकसित समाज
की कड़वी सच्चाई यह भी है कि घर हो या
बाहर, दुर्व्यवहार महिलाओं के साथ ही होता है। दहेज के लिए हत्या और प्रताड़ित करने
कि घटनाओं में इजाफा इस बात के सबूत हैं।
कहते हैं बच्चे की पहली पाठशाला उसका घर होता
है। तो आखिर उनकी परवरिश में कहां कमी रह जाती है कि सड़कों पर खुलेआम बदतमीजी करने
से ये बाज नहीं आते। उनके माँ बाप को भी इस दिशा में सोचना चाहिए। एक स्वस्थ,
सुन्दर और भयमुक्त समाज बनाने की ज़िम्मेदारी हम सबकी है। इसमें ऐसी चीजों के लिए
कोई जगह नहीं होनी चाहिए। यह सच है कि घर के चारों ओर अगर कचड़ा फैला हुआ हो तो हम
अपने घर को दुर्गन्धमुक्त नहीं रख सकते। और चुपचाप बैठे रहना भी समाधान नहीं है। साथ
ही प्रशासन को भी दोषियों को सजा दिलाने में महती भूमिका अदा करने की ज़रूरत है।
गिरिजेश कुमार