लोकतंत्र पर मंडरा रहा है खतरा
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ऐसे में जब अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन को आखिरी लड़ाई के रूप में आह्वान कर दिया है स्थितियाँ बिगड़ने के हालात ज्यादा हैं| दरअसल सवाल सिर्फ जनलोकपाल विधेयक और भ्रष्टाचार का ही नहीं है| कई मुद्दे हैं जिनसे लोगों का संसदीय व्यवस्था से विश्वास उठता जा रहा है| जिनमे मंहगाई, बेरोजगारी, आर्थिक असमानता, जैसे मुद्दे प्रमुख हैं| सच यह भी है कि एक तरफ़ लोग सम्मानजनक जिंदगी जीने की कोशिश में दिनरात एक करते हैं तो दूसरी तरफ़ सुविधासंपन्न लोग हैं| दोनों के बीच बढ़ रही खाई निराशा की चरम सीमा तक पहुंच चुकी है| इसलिए समझना यह भी पड़ेगा कि यह निराशा सामाजिक नियमों, आदर्शों और मूल्यों को नजरंदाज कर हक और अधिकार में अंतर समझे बिना लोगों को उपद्रवी बना सकती है और वह स्थिति निश्चित ही सभ्य समाज के लिए अच्छी नहीं होगी| और फिर लोकतान्त्रिक व्यवस्था में आम जनता को ज्यादा दिनों तक बेवकूफ बनाना भी आसान नहीं है| लेकिन वोट बैंक और कुर्सी के लालच में देश को बांटने से भी पीछे न हटने वाली पार्टियां क्या अपने अंतर्मन से ये सवाल पूछेंगी? ज़ाहिर है नहीं|
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दूसरी तरफ केन्द्र सरकार की जनआकांक्षाओं से जुड़े जनलोकपाल बिल पर जिस तरह से उदासीन दिखी और दिख रही है उसने सरकार के खिलाफ लोगों के गुस्से को भड़काने का काम किया है| यानी लोकतांत्रिक व्यवस्था के नियमों को कुचलकर सरकार ने जनता की भावनाओं का भी मजाक बनाया| इसलिए आज स्वतंत्रता दिवस यानि 15 अगस्त की चर्चा के बदले 16 अगस्त की चर्चा लोगों के जुबान पर है| समर्थन कितना मिलेगा य सरकार क्या रुख अपनाएगी यह तो आनेवाला वक्त बताएगा लेकिंन आम लोगों का संसदीय व्यवस्था से इस तरह भरोसा उठना लोकतंत्र के लिए खतरनाक है|
गिरिजेश कुमार