Pages

Wednesday, November 23, 2022

जीवाणुओं ने भारत में ली 13.67 लाख लोगों की जान

नई दिल्ली। 33 तरह के जीवाणुओं के रण 2019 में भारत में 13.67 लाख से अधिक लोगों की जान गई हैं। इनमें से 5 तरह के जीवाणु, ई.कोली, एस. न्यूमोनिया, के.न्यूमोनिया, एस.ऑरियस और ए.बाउमनी, में ही सबसे घातक रोगजनक पाए गए हैं। लैंसेट में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार इन पांच जीवाणुओं के कारण होने वाले संक्रमण के कारण 2019 में भारत में 6.8 लाख से अधिक लोगों की जान गई है। जबकि 33 बैक्टीरियल इंफेक्शन ने 13.67 लाख से अधिक लोगों की जान ली है। 


ई.कोली ने ली भारत में सबसे अधिक जान

भारत में सबसे अधिक जान ई. कोली की वजह से गई है। यह बैक्टीरिया डायरिया, मूत्र पथ के संक्रमण और निमोनिया से जुड़ा हुआ है। इसने 1.6 लाख लोगों की जान ली है। लैंसेट की रिपोर्ट, ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज स्टडी 2019, 33 प्रजातियों के बैक्टीरिया के संक्रमण के कारण होने वाली मौतों पर आधारित है।  संक्रमण से संबंधित मौतों के लिए जिम्मेदार अन्य सामान्य बैक्टीरिया में साल्मोनेला टाइफी, गैर-टाइफाइडल साल्मोनेला और स्यूडोमोनास एरुगिनोसा शामिल हैं।

दुनियाभर में 77 लाख मौतें बैक्टीरिया से
लैंसेट की रिपोर्ट बताती है कि वैश्विक स्तर पर संक्रमण के कारण अनुमानित 1.37 करोड़ लोगों की मौत हुई है। इन मौतों में से, 77 लाख मौतें अध्ययन में शामिल 33 बैक्टीरियल इंफेक्शन से जुड़ी थीं, जिनमें पाँच बैक्टीरिया सभी मौतों के आधे से अधिक के लिए जिम्मेदार है। 77 लाख बैक्टीरिया से होने वाली मौतों में से 75 फीसदी से अधिक तीन सिंड्रोम के कारण हुईं हैं। इनमें निम्न श्वसन संक्रमण, रक्तप्रवाह संक्रमण और  पेट से संबंधित संक्रमण शामिल है। वाशिंगटन विश्वविद्यालय में इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन (आईएचएमई) के निदेशक तथा अध्ययन के सह-लेखक डॉक्टर क्रिस्टोफर मुरे ने कहा कि पहली बार ये नए आंकड़े जीवाणु संक्रमण से उत्पन्न वैश्विक स्वास्थ्य को चुनौती के बारे में बताते हैं। 


किस बैक्टीरिया से देश में कितनी मौतें     मृत्यु दर/लाख     दुनिया में मौतें 

इशरीकिया कोली                         1.6 लाख     16.1       9.50 लाख

स्ट्रैपटोकोकस निमोनिया(एस.  निमोनिया) 1.4 लाख     14.4        8.29 लाख

क्लेबसिएला निमोनिया                 1.3 लाख     13.2         7.90 लाख

स्टेफिलोकोकस ऑरियस( एस ऑरियस) 1.2 लाख     12.8          11 लाख

एसिनेटोबैक्टर बाउमानी                 1.1 लाख      11

उम्र के हिसाब से भी अलग-अलग है मौतों का आंकड़ा 
-15 साल से ऊपर के युवाओं की मौत की सबसे बड़ी वजह एस, ऑरियस बैक्टीरिया। इनकी वजह से 9.40 लाख जानें पूरी दुनिया में गई हैं।
-5 से 14 साल की उम्र के बच्चों में सबसे ज्यादा मौतें साल्मोनेला एंटरिका सेरोवर टायफी से जुड़ी, 49,000 मौतें हुई
-नवजात शिशुओं से बड़े लेकिन 5 साल से कम उम्र के बच्चों में, एस निमोनिया सबसे घातक रोगज़नक़ था, जिसकी वजह से 225,000 मौतें हुईं
-नवजात शिशुओं की मौतों से जुड़ा रोगजनक के. निमोनिया है, 1.24 लाख मौतें हुईं

प्रमुख बातें 

-2019 में दुनियाभर में 77 लाख मौतें 33 तरह के बैक्टीरिया के कारण हुई

-कुल वैश्विक मौतों का 13.6 प्रतिशत का कारण ये 33 बैक्टीरिया 

-54.6 फीसदी मौतों के लिए पांच तरह के बैक्टीरिया जिम्मेदार

जीवाणु के कारण देश, क्षेत्र के अनुसार मृत्यु दर अलग-अलग

-सब सहारन अफ्रीका में 230 मौतें प्रति एक लाख जनसंख्या पर

-पश्चिमी यूरोप, उत्तरी अमेरिका, एशिया में 52 मौतें प्रति एक लाख जनसंख्या पर

Thursday, November 17, 2022

दुनियाभर में 1 अरब युवाओं पर क्यों है बहरे होने का खतरा?

नई दिल्ली। हेडफोन, ईयरफोन तथा ईयरबड पर तेज आवाज में संगीत सुनने के कारण किशोरों व युवाओं पर बहरेपन का खतरा मंडरा रहा है। बीएमजे ग्लोबल हेल्थ जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में दुनियाभर में 1 अरब से अधिक किशोरों व युवाओं के सुनने की क्षमता खो देने के खतरे का अंदेशा जताया गया है।

शोधकर्ताओं की इस अंतरराष्ट्रीय टीम का अनुमान है कि 12 से 34 वर्ष के 24% युवा अपने डिवाइस पर आवाज के 'असुरक्षित स्तर' पर संगीत सुन रहे हैं। यानी वे तेज आवाज में गाने सुन रहे हैं। जो उनके कानों के लिए ठीक नहीं है। शोधकर्ताओं ने सरकारों से सुनने की सुरक्षित नीतियों को तत्काल लागू करने का आह्वान भी किया है। 

 43 करोड़ लोग सुनने की अक्षमता से पीड़ित
विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि वर्तमान में दुनिया भर में सभी उम्र के 43 करोड़ से अधिक लोग सुनने की अक्षमता से पीड़ित हैं। स्मार्टफोन, हेडफोन और ईयरबड्स जैसे व्यक्तिगत सुनने वाले उपकरणों  के उपयोग के कारण युवा विशेष रूप से प्रभावित हो रहे हैं। साथ ही तेज आवाज में संगीत बजानेवाले जगहों पर जाने से भी उनके कानों पर असर पड़ रहा है।  

तेज आवाज में एक बार भी सुनना खतरनाक
शोधकर्ताओं के अनुसार तेज आवाज में एक बार गाने सुनना भी खतरनाक है। बार-बार सुनने से कान के सुनने की प्रणाली खत्म हो सकती है। वॉल्यूम तेज होने से कानों का होनेवाला नुकसान आगे जीवन में और मुश्किल खड़ी कर सकता है। कम उम्र के लोगों में अगर यह होता है तो इससे आगे चलकर उन्हें ज्यादा दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। 

21 सालों के अध्ययन का अध्ययन
शोधकर्ताओं ने पिछले 21 सालों के अध्ययन का अध्ययन कर यह निष्कर्ष निकाला है। अमेरिका में साउथ कैरोलिना विश्वविद्यालय के शिक्षाविदों के नेतृत्व में शोधकर्ताओं ने वर्ष 2000 और 2021 के बीच व्यक्तिगत सुनने वाले उपकरणों और तेज संगीत वाले स्थानों पर हुए पिछले अध्ययनों की जांच की है। इस विश्लेषण में 19,000 से अधिक लोगों पर किए गए 33 अध्ययनों को शामिल किया गया था।

तेज आवाज में गाने सुननेवालों में 27 फीसदी नाबालिग
शोधकर्ताओं ने कहा कि स्मार्टफोन, ईयरफोन, ईयरबड्स इत्यादि पर तेज आवाज में गाने सुननेवालों में 27 फीसदी नाबालिग हैं। 23 फीसदी संख्या वयस्कों की है। यह भी अनुमान लगाया गया है कि दुनिया भर में 12 से 34 वर्ष की आयु के 48% लोग क्लब या बार जैसे तेज आवाज वाले संगीत स्थलों में जाते हैं। इन आंकड़ों के आधार पर शोधकर्ताओं का अनुमान है कि किशोरों और युवा वयस्कों की वैश्विक संख्या जिनके सुनने की क्षमता खो देने का खतरा है, वह 0.67 अरब से 1.35 अरब तक हो सकती है।

भारत सहित दो दर्जन देशों की स्टडी शामिल
इस निष्कर्ष में भारत सहित करीब दो दर्जन देशों की स्टडी को शामिल किया गया है। इसमें उच्च, मध्यम व निम्न आय वाले तीनों तरह के देश शामिल हैं। यूएसए, यूके, स्वीटजरलैंड, नीदरलैंड्स, कनाडा, मेक्सिको इत्यादि देशों को अध्ययन में शामिल किया गया है। 

Wednesday, November 16, 2022

दुनिया@ 8,00,00,00,000, पर तेजी से हो रही बूढ़ी, जानिए भारत का हाल

नई दिल्ली। दुनिया की आबादी मंगलवार को 8 अरब को पार कर गई। पिछले 48 सालों में ही आबादी दोगुनी हो गई है। 1974 में दुनिया की आबादी 4 अरब थी। आबादी बढ़ने के साथ ही बुजुर्गों की संख्या भी काफी तेजी से बढ़ रही है। यूएन की रिपोर्ट के अनुसार पूरी दुनिया में बुजुर्गों की आबादी तेजी से बढ़ रही है। अभी वैश्विक जनसंख्या में 65 की उम्र या उससे अधिक उम्र वाले लोगों की हिस्सेदारी 10 फीसदी है, जबकि 2022 से 2030 के बीच यह बढ़कर 12 फीसदी हो जाएगी तथा 2050 तक 16 फीसदी हो जाएगी। इस दौरान यूरोप और नॉर्थ अमेरिका में हर 4 में से एक व्यक्ति की उम्र 65 साल से ज्यादा होगी।
भारत में 2036 तक बुजुर्गों की संख्या दोगुनी
नेशनल कमीशन ऑन पॉपुलेशन की रिपोर्ट के मुताबिक देश में 2036 तक बुजुर्गों की संख्या दोगुनी हो जाएगी। मध्यम आयु-समूह (15-59 वर्ष) और बुजुर्गों (60 वर्ष और अधिक) के अनुपात में काफी वृद्धि होगी। जनसंख्या में वृद्ध व्यक्तियों की संख्या 2036 तक 23 करोड़ होने का अनुमान है। 2011 में देश में 10 करोड़ बुजुर्ग थे। कुल जनसंख्या में बुजुर्गों की संख्या में 6.5 फीसदी की वृद्धि होगी। 14.9 प्रतिशत बुजुर्ग होंगे। 

युवाओं की संख्या में वृद्धि का दौर खत्म
भारत में युवाओं की संख्या में वृद्धि का दौर खत्म हो चुका है। 15-24 वर्ष की आयु वर्ग में युवा जनसंख्या 2011 में 23.3 करोड़ से बढ़कर 2021 में 25.1 करोड़ होने का अनुमान था। 2036 तक यह इसके घटकर 22.9 करोड़ पर आने का अनुमान है। जनसंख्या में इस आयु वर्ग की हिस्सेदारी 15.1 फीसदी रह जाएगी, 2011 में यह 19.3 फीसदी थी। यानी 2011 में भारत में आधी आबादी(50.2 प्रतिशत) 24 साल या उससे कम की थी। 2036 में यह 35.3 फीसदी रह जाएगी। 2036 में भारतीयों की औसत आयु 34.5 वर्ष होने की उम्मीद है। 

2018 में पहली बार बुजुर्गों की आबादी बच्चों से ज्यादा हुई थी
दुनिया भर में 2018 में पहली बार 65 वर्ष या उससे अधिक आयु के व्यक्तियों की संख्या पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों से अधिक हुई थी। 2022 में, दुनियाभर में बुजुर्गों की संख्या 77.1 करोड़ है, जो 1980 से तीन गुना ज्यादा है। तब बुजुर्गों की आबादी 25.8 करोड़ थी। 2030 तक बुजुर्गों की आबादी 99.4 करोड़  और 2050 तक 1.6 अरब तक पहुंचने का अनुमान है। 2050 तक वैश्विक स्तर पर 65 वर्ष या उससे अधिक उम्र के लोगों की संख्या 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की संख्या से दोगुनी से अधिक होगी, जबकि 65 वर्ष की आयु के व्यक्तियों की संख्या या वैश्विक स्तर पर लगभग 12 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की संख्या के बराबर होगी।

2050 तक दुनिया की 50% आबादी 8 देशों में होगी
यूएन की रिपोर्ट के अनुसार 2050 तक दुनिया की आबादी का  आधा से ज्यादा हिस्सा केवल आठ देशों में होगा। इनमें भारत, पाकिस्तान, फिलीपींस, मिस्र, कांगो, नाइजीरिया, तंजानिया​ और ​​​​​​इथियोपिया शामिल हैं। इसके अलावा 61 ऐसे देशों का अनुमान भी लगाया है जिनकी आबादी 2022 से 2050 के बीच घट जाएगी। इनमें सबसे ज्यादा देश यूरोप के होंगे। फिलहाल 46 देशों की आबादी सबसे ज्यादा तेजी से बढ़ रही है, जिनमें से 32 देश सब सहारा अफ्रीका के हैं। 

8 अरब सपने, 8 अरब उम्मीदें
दुनिया भर में पिछले 12 वर्षों में एक अरब लोगों नए लोग जुड़े हैं। भारत अगले साल चीन को दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले देश के रूप में पछाड़ने के कगार पर है। संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि वैश्विक आंकड़ा सार्वजनिक स्वास्थ्य में बड़े सुधार का संकेत देता है। मृत्यु का जोखिम कम हुआ है जीवन प्रत्याशा में वृद्धि हुई है। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष ने कहा कि आठ अरब उम्मीदें। आठ अरब सपने। आठ अरब संभावनाएं। हमारा ग्रह अब आठ अरब लोगों का घर है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस ने कहा कि अगर दुनिया अमीरों और वंचितों के बीच की खाई को खत्म नहीं करेगी तो आठ अरब की यह आबादी, तनाव और अविश्वास, संकट और संघर्ष से भरी रहेगी। मानव आबादी लगभग 1800 तक एक अरब से कम थी, और एक से दो अरब तक बढ़ने में 100 से अधिक वर्षों का समय लगा।

ये चुनौतियां भी
आबादी 8 अरब पर भले ही पहुंच गई है लेकिन दुनिया आज वैसी नहीं है जैसी कभी रही है। कई मायनों में लोग अभी भी पुरानी समस्याओं का सामना कर रहे हैं। हालांकि की उपलब्धियां भी हासिल हुई हैं। विश्व स्तर पर गरीबी दर में गिरावट आई है और विज्ञान ने कई लोगों की जान बचाई है। असमान आय, वैश्विक आबादी के सबसे गरीब आधे हिस्से को आय के दसवें हिस्से से भी कम वेतन मिलता है। जलवायु संकट सबसे बड़ा खतरा है। प्रजनन क्षमता में गिरावट का मतलब है कि दुनिया तेजी से बूढ़ी हो रही है, जिसके परिणाम कुछ विकसित अर्थव्यवस्थाओं में पहले से ही दिखाई दे रहे हैं। महिलाओं ने प्रगति की है लेकिन बेहतर अंतर्संबंध और आर्थिक भागीदारी के फल को भोगने में पीछे रह गई हैं। 

कैसे बढ़ी दुनिया की आबादी, 48 साल में ही हुई दोगुनी

1804 1 अरब

1927 2 अरब

1960 3 अरब

1974 4 अरब

1985 5 अरब

1999 6 अरब

2011 7 अरब

2022 8 अरब

किस देश में कितने लोग (प्रत्येक 100 लोगों में)

चीन         18
भारत 18
यूएस   4
पाकिस्तान    3
नाइजीरिया    3
इंडोनेशिया    3
ब्राजील     3
बांग्लादेश     2
अन्य            46

लोगों की औसत उम्र

1950 22.2 साल

2020 29.7 साल

2100 42.3 साल 

Tuesday, November 15, 2022

चिंताजनक: दुनियाभर में 78.7 करोड़ लोगों के पास पीने का साफ पानी नहीं,1.3 अरब बिना घर के

नई दिल्ली। 
दुनियाभर में 78.7 करोड़ लोगों के पास पीने का साफ पानी नहीं है, 1.3 अरब लोग बिना घर के रह रहे हैं। ये आंकड़े न्यूयॉर्क के फोर्डहम विश्वविद्यालय की रिपोर्ट के हैं। फोर्डहम फ्रांसिस ग्लोबल पॉवर्टी स्कोर 2022 के अनुसार दुनिया की 26.2 प्रतिशत आबादी गरीबी में रहती है। यह पिछले सात सालों में, जब से रिपोर्ट तैयार की जा रही है, सबसे अधिक है। रिपोर्ट के अनुसार भोजन की कमी, महिलाओं के खिलाफ अधिक भेदभाव और धार्मिक स्वतंत्रता पर व्यापक प्रतिबंधों ने दुनिया भर में गरीबी को बढ़ाया है। 

 

80 देशों के आंकड़ों के आधार पर तैयार की गई है रिपोर्ट

रिपोर्ट में कहा गया है कि स्कोर 80 से अधिक देशों से एकत्रित डेटा का औसत है। इसमें कोई भी विकसित देश शामिल नहीं है। रिपोर्ट में आकलन करने के लिए संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों और गैर-सरकारी संगठनों के नवीनतम उपलब्ध डेटा का उपयोग किया गया है। सात पैरामीटर पर रिपोर्ट तैयार की गई है। इसमें चार लोगों की भौतिक जरूरतों से संबंधित हैं, जबकि तीन में शिक्षा, लैंगिंक समानता तथा धार्मिक स्वतंत्रता शामिल है। चार भौतिक जरूरतों में भोजन, पानी आवास और रोजगार शामिल है। विश्वविद्यालय के अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक अर्थव्यवस्था और विकास में विश्वविद्यालय के स्नातक कार्यक्रम के निदेशक हेनरी श्वालबेनबर्ग ने कहा कि 2015 के बाद सात मानदंडों के तहत मापी गई गरीबी सबसे अधिक है।

 82 देशों की लिस्ट में भारत का स्थान 64वां
82 देशों की लिस्ट में सभी सात पैरामीटर पर भारत का स्थान 64वां है।  भारत का फोर्डहम फ्रांसिस इंडेक्स 0.59 है। 2020 में भारत 44 वें स्थान पर था। भारत 2021 की स्थिति के अनुसार लैंगिक समानता से वंचित टॉप 10 देशों में शामिल है। इस लिस्ट में चीन, पाकिस्तान, वियतनाम, कतर, आर्मेनिया, मालदीव अफगानिस्तान इत्यादि देश भी हैं। हालांकि भोजन, पानी, आवास व रोजगार में भारत टॉप 10 देशों में शामिल नहीं है। 

रिपोर्ट के आंकड़े -
रिपोर्ट बताता है कि स्वच्छ पानी की पहुंच में 2020 में सुधार हुआ है। लेकिन कुपोषित लोगों की संख्या बढ़ी है। इसी तरह, बिना घर वाले लोगों की संख्या बढ़ी है। 

 -10.1%, 2020 में लगभग 78.7 करोड़ लोगों के पास स्वच्छ पानी नहीं मिला।
-2019 में 9.2 प्रतिशत लोग, लगभग 71 करोड़ कुपोषित थे।
-17.2 प्रतिशत लोग, लगभग 1.3 बिलियन के पास घर नहीं
-वयस्क आबादी का 13.3 प्रतिशत, लगभग 77.6 करोड़ 2020 में निरक्षर थे।
- दुनिया की श्रम शक्ति का 23.2 प्रतिशत, लगभग 80.4 करोड़ लोग बिना काम के थे।
या वे 2021 में प्रति दिन 3.20 डॉलर से कम वेतन पर काम कर रहे थे।
-दुनिया में 51.2% महिलाएं और लड़कियां ऐसे समाज में रहती हैं जहां उनके साथ लैंगिक आधार पर भेदभाव किया जाता है। दुनियाभर में 2 अरब महिलाएं ऐसी हैं।
-4.5 अरब लोगों की धार्मिक स्वतंत्रता पर अलग-अलग तरीकों से प्रतिबंध लगाए गए। 


सेंट्रल टेक्सास में लक्जरी घर खरीदने में सबसे आगे हैं भारतीय


नई दिल्ली। ऑस्टिन बोर्ड ऑफ रियल्टर्स द्वारा हाल ही में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका के सेंट्रल टेक्सास में घर खरीदने में दुनिया में सबसे आगे भारतीय हैं। ऐसा पहली बार हुआ है जब भारतीय मूल के लोगों ने दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले टेक्सास में सबसे ज्यादा घर खरीदा है। 

सेंट्रल टेक्सास इंटरनेशनल होमबॉयर्स रिपोर्ट 2022 अंतर्राष्ट्रीय होमबॉयर्स भारत के लोगों का हिस्सा 21 फीसदी है। जो सबसे अधिक है। इसके बाद मेक्सिको का स्थान है वहां के लोगों का 10 फीसदी हिस्सा है। चीनके 6 फीसदी व कनाडा के 4 फीसदीलोगों ने घर खरीदा है। 

41 फीसदी भारतीय हैं 
ग्रेटर ऑस्टिन एशियन चैंबर ऑफ कॉमर्स के अनुसार, ग्रेटर ऑस्टिन में 1.65 लाख एशियाई अमेरिकी व्यक्ति रहते हैं जिसमें 41 प्रतिशत भारतीय हैं। यह वर्ष 2010 के मुकाबले 30 प्रतिशत अधिक है। रिपोर्ट के अनुसार ऑस्टिन के तकनीकी क्षेत्र में वृद्धि की वजह से भारतीय घर खरीदारों की संख्या बढ़ रही है।  

भारत से ज्यादातर विदेशी खरीदार संपत्ति खरीदने के लिए अमेरिकी मॉर्गेज फाइनेंसिंग (82 फीसदी) का इस्तेमाल करते हैं, जबकि 12 फीसदी खरीदारी पूरी तरह से नकद होती है। 

विलियमसन काउंटी भारतीयों की पसंद
टेक्सास में विलियमसन काउंटी भारतीयों की सबसे ज्यादा पसंद है। यहां 53 फीसदी भारतीयों ने घर खरीदा है। इसके बाद ऑस्टिन शहर के अंदर ट्रेविस काउंटी में 24 प्रतिशत, ऑस्टिन शहर के बाहर 18 प्रतिशत और हेस काउंटी में छह प्रतिशत की खरीदारी हुई है। अंतरराष्ट्रीय होमबॉयर्स ने अप्रैल 2021 से मार्च 2022 तक ग्रेटर ऑस्टिन क्षेत्र में संपत्तियों पर 61.3 करोड़ डॉलर खर्च किए हैं। 

सेंट्रल टेक्सास, न्यूयॉर्क और फ्रांसिस्को जैसे महानगरों का विकल्प
रिपोर्ट के मुताबिक, सेंट्रल टेक्सास भारतीय घर खरीदारों के लिए न्यूयॉर्क और सैन फ्रांसिस्को जैसे महंगे महानगरीय क्षेत्रों का विकल्प प्रदान करता है। यहां अपार्टमेंट से लेकर एकल-परिवार के लिए घरों की सुविधा उपलब्ध है। अंतर्राष्ट्रीय होमबॉयर्स में गैर-अमेरिकी नागरिक शामिल हैं जो यहां ग्रीन कार्ड पर हैं या यहां विदेशी कार्य या छात्र वीजा पर हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि आधे से अधिक विदेशी खरीदारों के पास अमेरिकी ग्रीन कार्ड है, जो दर्शाता है कि वे वैध स्थायी निवासी हैं।

भारतीयों ने किस तरह के घर खरीदे

सिंगल फैमिली होम प्रॉपर्टी- 94 %
आवासीय भूमि 6%
प्राथमिक आवास के लिए 59 फीसदी खरीदारी
35 फीसदी घरों का उपयोग किराये के लिए किया जा रहा
6 फीसदी लोगों ने अन्य कामों के लिए खरीदारी की
घरों की औसत कीमत- 513900 डॉलर( 4.17 करोड़ रुपए से अधिक) 

Monday, November 14, 2022

विश्व मधुमेह दिवस: युवा क्यों आ रहे चपेट में, जानिए ?

 

नई दिल्ली। इंटरनेशनल डायबेट्स फेडरेशन की रिपोर्ट के अनुसार 53.7 करो़ड़ लोग मधुमेह की बीमारी से ग्रसित हैं। यह संख्या लगातार बढ़ रही है। हालांकि अच्छी बात यह है कि लोगों में जागरूकता भी बढ़ रही है। हेल्थकेयर कंपनी प्रैक्टो की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले एक साल में युवाओं में मधुमेह से संबंधि सलाह में 46 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है। यह सर्वे अक्टूबर 2020 से सितंबर 2021 तथा अक्टूबर 2021 से सितंबर 2022 के आंकड़ों पर आधारित है।

सलाह लेनेवालों में आधे युवा 25-34 साल के

रिपोर्ट के अनुसार मधुमेह से संबंधित सलाह लेनेवाले युवाओं में 50 फीसदी 25-34 साल की आयुवर्ग के थे। पिछले वर्ष से परामर्श लेने में उनकी हिस्सेदारी में 46 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। 35-44 साल के युवाओं में सलाह लेने की प्रवृत्ति 33 फीसदी बढ़ी है जबकि 45-54 साल के लोग 8 फीसदी थे।  डॉक्टरों का सुझाव है कि खराब जीवन शैली  व्यायाम न करना तथा खराब आहार की आदतें युवा भारतीयों में मधुमेह के लिए जिम्मेदार  हैं। 

 5.36 लाख मरीजों के सैंपल में 44 फीसदी 40-60 साल के

टाटा1 एमजी की ओर से जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार मार्च से अक्टूबर 2022 तक जांच किए गए सैंपल में 1 तिहाई लोगों में मधुमेह पाया गया। जिसमें 40-60 साल के उम्र के लोगों की संख्या सबसे अधिक थी। इसके अलावा मधुमेह रोगियों का अनुपात महिलाओं की तुलना में पुरुषों में अधिक पाया गया। । यह रिपोर्ट उन लोगों पर किए गए डेटा विश्लेषण के आधार पर तैयार की गई है, जो मधुमेह के लिए खुद की जांच करवाना चाहते थे। 

मार्च-अक्टूबर 2022 के बीच मधुमेह के लिए कुल 536,164 ब्लड सैंपल की जांच की गई। इन नमूनों में से 180,891 (लगभग 33 प्रतिशत) में मधुमेह पाया गया। सबसे अधिक 44 फीसदी 40-60 साल की उम्र केथे। उसके 60 साल से ऊपर के 42 फीसदी, 25-40 साल के 12.5 फीसदी लोगों में मधुमेह पाया गया।

मधुमेह की स्थिति 

- भारत में 7.7 करोड़ लोग मधुमेह से पीड़ित हैं

- दुनिया में 53.7 करोड़(20-79 साल के) पीड़ित हैं

- यानी हर 10 में से 1 व्यक्ति डायबिटीज से ग्रसित है। 

- 2030 तक  इसके 64.3 करोड़ पर पहुंचने का अनुमान है

-2045 तक दुनियाभर में 78.3 करोड़ लोग मधुमेह से ग्रसित होंगे

-2021 में 67 लाख लोग मधुमेह से मरे

स्त्रोत- इंटरनेशनल डायबेट्स फेडरेशन  

Sunday, November 13, 2022

पांच साल बाद दुनिया को मिलेगी सबसे घातक हाईपरसोनिक मिसाइल

नई दिल्ली। पांच साल बाद, 2027 में दुनिया को सबसे घातक हाईपरसोनिक मिसाइल मिलेगी। नई हाईपरसोनिक अटैक क्रूज मिसाइल(एचएसीएम) वर्तमान मिसाइल से 20 गुना तेजी से उड़ान भरेगी। इस मिसाइल से दुश्मनों को बचने का मौका नहीं मिलेगा। यह अपनी तरह का पहला मिसाइल होगा जो एयर-ब्रीदिंग स्क्रैमजेट इंजन का इस्तेमाल करेगा। अमेरिका और आस्ट्रेलिया के लिए यह मिसाइल निर्माण किया जा रहा है। 


अमेरिकी कंपनी कर रही निर्माण 

मिसाइल का निर्माण अमेरिकी कंपनी रेथियॉन और नॉर्थ्रॉप ग्रुम्मन करेगी। कंपनी 98.5 करोड़ डॉलर से हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल विकसित करेगी। संयुक्त राज्य अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के लिए विकसित किया जानेवाले यह मिसाइल जमीन पर हमले के लिए डिज़ाइन किया गया है। अनुबंध की शर्तों के तहत, अमेरिका को 2027 में पहली मिसाइल मिलेगी।  2020 में, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया ने संयुक्त रूप से साउदर्न क्रॉस इंटीग्रेटेड फ़्लाइट रिसर्च एक्सपेरिमेंट पार्टनरशिप(एससीआईफायर) की शुरुआत की। ऑस्ट्रेलिया के राष्ट्रीय ध्वज पर दिखाई देने वाले नक्षत्र के नाम पर एससीआईफायर का उद्देश्य एक एयर-ब्रीदिंग हाइपरसोनिक हथियार प्रणाली विकसित करना था।  

 क्या है पारंपरिक क्रूज मिसाइल
पारंपरिक क्रूज मिसाइल मूल रूप से पायलट रहित विमान हैं। टर्बोफैन इंजन क्रूज मिसाइलों को शक्ति प्रदान करते हैं। राडार से बचने के लिए क्रूज मिसाइलें कम उंचाई पर उड़ती हैं। टॉमहॉक क्रूज मिसाइलें 550 मील प्रति घंटे की गति से 98 से 164 फीट की ऊंचाई पर उड़ती हैं।

हाईपरसोनिक मिसाइल
एचएसीएम एक हाइपरसोनिक हथियार है, जिसका अर्थ है कि ध्वनि की गति से 5 गुना तेज गति गति से उड़ान भरता है। अधिकांश मिसाइलें लगभग मच 3(ध्वनि की गति से 3 गुना अधिक) तेजी से उड़ान भरती हैं।  टर्बोफैन इंजन की तरह, स्क्रैमजेट ईंधन के के लिए आसपास के वातावरण से ऑक्सीजन लेते हैं। नासा के अनुसार, स्क्रैमजेट इंजनों को कम से कम 15 मच तक काम करना चाहिए। यह प्रति घंटे 11,509 मील की दूरी तय करता है, या लगभग दो घंटे में पृथ्वी का चक्कर लगा सकता है। 

अमेरिकी रक्षा कंपनी रेथियॉन भारत में रक्षा और एयरोस्पेस क्षेत्र में काम कर रही
भारत के एयरोस्पेस और रक्षा क्षेत्र के लिए रेथियॉन टेक्नोलॉजी काम कर रही है। 1940 के दशक से ही कंपनी काम कर रही है। कंपनी मेक इन इंडिया के तहत नेट जीरो एमिशन की दिशा में देश की मदद करने के लिए स्थानीय स्तर पर उत्पादों को विकसित करने के लिए भारत में स्थित फर्मों के साथ साझेदारी कर रही है। यहां 5 हजार से ज्यादा कर्मचारी आधुनिक हथियार बनाने में लगे हैं।

अंतरिक्ष में भारत के नए युग की शुरुआत, अब स्पेसएक्स को मिलेगी टक्कर

स्काईरूट द्वारा बनाया रॉकेट

 नई दिल्ली। स्पेसएक्स की तरह भारत भी अब निजी रॉकेट के जरिए   अंतरिक्ष में कदम रखने को तैयार है। भारत का पहला निजी तौर पर   विकसित रॉकेट विक्रम-एस तीन पेलोड के साथ मिशन पर 15 नवंबर को   लॉन्च के लिए तैयार है। हैदराबाद स्थित अंतरिक्ष स्टार्टअप स्काईरूट   एयरोस्पेस द्वारा इसे विकसित किया गया है। स्काईरूट एयरोस्पेस का   यह पहला मिशन है। इसका नाम 'प्रारंभ' रखा गया है। रॉकेट दो   भारतीय और एक विदेशी पेलोड ले जाएगा। इसे श्रीहरिकोटा में भारतीय   अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के लॉन्चपैड से लॉन्च किया जाएगा। 

विक्रम एस क्या है?

भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक विक्रम साराभाई के नाम पर रॉकेट का नाम विक्रम एस रखा गया है। यह एक छोटा-लिफ्ट लॉन्च वाहन है। इसे अंतरिक्ष उद्योग के लिए एक नए युग की शुरुआत का संकेत बताया जा रहा है। स्काईरूट एयरोस्पेस के चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर नागा भरत डाका के अनुसार विक्रम-एस रॉकेट एक सिंगल-स्टेज सब-ऑर्बिटल लॉन्च व्हीकल है जो तीन ग्राहक पेलोड ले जाएगा और अंतरिक्ष लॉन्च वाहनों की तकनीकों का परीक्षण और सत्यापन करने में मदद करेगा।

सीरीज में तीन रॉकेट, इंटरनेट जीपीएस की सेवाएं बेहतर होंगी 

'विक्रम' सीरीज में तीन रॉकेट हैं जिन्हें छोटे उपग्रहों को लॉन्च करने के लिए विकसित किया जा रहा है। ये अंतरिक्ष और पृथ्वी इमेजिंग से ब्रॉडबैंड इंटरनेट, जीपीएस, आईओटी जैसी संचार सेवाओं को बेहतर करने में मदद करेंगे।

815 किलो तक के उपग्रह को ले जा सकेंगे
स्टार्टअप मीडिया एंड इंफॉर्मेशन प्लेटफॉर्म आईएनसी42 की रिपोर्ट में कहा गया है कि विक्रम सीरीज़ (1, 2, 3) में सॉलिड-स्टेट रॉकेट शामिल हैं जो कार्बन कंपोजिट और 3डी-प्रिंटेड मोटर्स के साथ अपग्रेड होनेवाले आर्किटेक्चर पर बनाए गए हैं। इसे 72 घंटे से कम समय में असेंबल और लॉन्च किया जा सकता है। वे 815 किलोग्राम तक के वजन वाले उपग्रहों को पृथ्वी की निचली कक्षा और सूर्य-समकालिक ध्रुवीय कक्षाओं  में ले जा सकते हैं।

विक्रम-1 सीरीज का पहला प्रक्षेपण होगा जिसमें तीन ठोस ईंधन, साथ ही एक तरल-ईंधन किक चरण शामिल है। यह कम झुकाव वाली कक्षाओं में 480 किलोग्राम वजन वाले हल्के उपग्रहों को ले जाने में सक्षम होगा। अन्य दो, विक्रम 2 और विक्रम 3 में कई कक्षीय सम्मिलन के साथ भारी पेलोड होंगे।

सब-ऑर्बिटल मिशन क्या है?
एक सब-ऑर्बिटल(उप-कक्षीय) अंतरिक्ष यान तब होता है जब एक अंतरिक्ष यान उस गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र को छोड़ देता है जिससे इसे लॉन्च किया गया था। उप-कक्षीय मिशन कक्षा की तुलना में कम ऊंचाई पर होते हैं। वास्तविक कक्षा में अंतरिक्ष यान के प्रक्षेपण से पहले प्रयोग के रूप में इन्हें महत्वपूर्ण माना जाता है। चेन्नई स्थित एक एयरोस्पेस स्टार्टअप, स्पेसकिड्ज़ विक्रम-एस के उप-कक्षीय उड़ान पर भारत, अमेरिका, सिंगापुर और इंडोनेशिया के छात्रों द्वारा विकसित 2.5 किलोग्राम पेलोड 'फन-सैट' उड़ाएगा।

 2020 में इसरो ने निजी कंपनियों के लिए खोला था दरवाजा
इसरो ने 2020 में निजी क्षेत्र को पहली बार रॉकेट एवं उपग्रह बनाने और प्रक्षेपण सेवाएं मुहैया कराने की अनुमति दी थी। हैदराबाद में स्थित, स्काईरूट पहला स्टार्टअप है जिसने अपने रॉकेट लॉन्च करने के लिए इसरो के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए। इसका उद्देश्य किफायती, विश्वसनीय और सभी के लिए नियमित अंतरिक्ष उड़ान के मिशन को आगे बढ़ाते हुए कम लागत पर उपग्रह प्रक्षेपण सेवाओं को उपलब्ध कराना है.। 


Saturday, November 12, 2022

सौर ऊर्जा से छह महीने में भारत ने बचाए तेल पर खर्च होनेवाले इतने हजार करोड़ रुपए

नई दिल्ली। सौर ऊर्जा के माध्यम से भारत ने इस साल जनवरी से लेकर जून तक की पहली छमाही में ईंधन पर
खर्च होनेवाले 420 करोड़ अमेरिकी डॉलर(34 हजार करोड़ से अधिक रुपए) बचाए हैं। साथ ही भारत ने 19.4 मिलियन टन कोयले की भी बचत की है। एनर्जी थिंक टैंक एम्बर, सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर, और इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस द्वारा जारी रिपोर्ट से यह खुलासा हुआ है। रिपोर्ट में पिछले 10 सालों में सौर ऊर्जा के विकास से संबंधित विश्लेषण किया गया है। 

सबसे अधिक चीन ने बचाए
रिपोर्ट में कहा गया है कि सबसे अधिक 34 बिलियन अमरीकी डालर की बचत चीन ने की है। वहां सौर ऊर्जा बिजली की कुल मांग का 5% पूरा करता है। इस अवधि के दौरान अतिरिक्त कोयला और गैस आयात में लगभग 21 बिलियन अमरीकी डालर बचाया गया है। चीन के बाद, जापान ने सौर ऊर्जा उत्पादन के कारण ईंधन की लागत में 5.6 बिलियन अमरीकी डालर की बचत की है। वियतनाम ने ईंधन लागत में 1.7 बिलियन अमरीकी डालर की बचत की है यहां 2018 में सौर उत्पादन लगभग शून्य टेरावाट घंटा था, जो अपने आप में एक बड़ी वृद्धि है।

सौर क्षमता वाली शीर्ष 10 अर्थव्यवस्थाओं में 5 अब एशिया में
रिपोर्ट के अनुसार सौर क्षमता वाली शीर्ष 10 अर्थव्यवस्थाओं में से पांच अब एशिया में हैं, जिनमें चीन, जापान, भारत, दक्षिण कोरिया और वियतनाम शामिल हैं। चीन, भारत, जापान, दक्षिण कोरिया, वियतनाम, फिलीपींस और थाईलैंड सहित सात प्रमुख एशियाई देशों ने जनवरी से जून 2022 तक लगभग 34 बिलियन अमरीकी डालर की संभावित जीवाश्म ईंधन की बचत की है, जो कुल जीवाश्म ईंधन लागत के 9% के बराबर है। 

बिजली की मांग में सौर ऊर्जा का हिस्सा 11 फीसदी
वर्ष 2022 में, जनवरी से जून तक बिजली की मांग में सौर ऊर्जा का 11% हिस्सा था। थाईलैंड और फिलीपींस में बचाई गई ईंधन लागत उल्लेखनीय है। फिलीपींस केवल 1% के लोगों के लिए सौर ऊर्जा उपलब्ध कराता है लेकिन इसके बावजूद ईंधन खर्च में 78 मिलियन अमरीकी डालर की बचत की है। वहीं थाईलैंड जहां सौर ऊर्जा बिजली का केवल 2 पीसदी है, अनुमानित 209 मिलियन अमेरिकी डॉलर की बचत की है।  इन दोनों देशों में सौर ऊर्जा का विकास धीमा रहा है। लेकिन फिर भी काफी अधिक राशि बचाई है।  

भारत में बिजली की डिमांड पिछले 10 सालों में 82 फीसदी बढ़ी है
भारत में वर्ष 2010 से 2021 तक पिछले 10 सालों में बिजली की मांग में 82 फीसदी की वृद्धि हुई है। इसी अवधि में वैश्विक स्तर पर बिजली की मांग में 31.8% की वृद्धि दर्ज की गई है। एशिया के अन्य देशों में वियतनाम में सबसे अधिक वृद्धि 125 फीसदी हुई है। इसके बाद चीन में 102 फीसदी, इंडोनेशिया  में 75 फीसदी, मलेशिया में 39 फीसदी तथा थाईलैंड मे 34 फीसदी की वृद्धि हुई है। 

 

मिसाइल हमले में बची सात साल की इस बच्ची की प्रतिभा ने दुनिया को चौंकाया

नई दिल्ली। सीरिया की मूल निवासी सात साल की बच्ची शम अल बकर ने दुबई ओपेरा में अरब रीडिंग चैंपियन का खिताब जीता है। वह जब सिर्फ छह माह की थी, तब सीरिया में गृहयुद्ध के दौरान पिता के साथ कार में यात्रा करते हुए एक मिसाइल आक्रमण में बच गई थी। हालांकि, इस घटना में उसके पिता की मौत हो गई थी। अरब रीडिंग चैंपियन बनने पर उसे पांच लाख दिराम (एक करोड़ रुपये से अधिक) की राशि पुरस्कार के तौर पर मिली है। 

(मिसाइल हमले में बची बच्ची के साथ दुबई के शासक)

बकर ने यह खिताब 44 देशों के 22.27 मिलियन (करीब सवा दो करोड़) बच्चों के बीच सबसे शानदार प्रदर्शन करते हुए जीता। संयुक्त अरब अमीरात के उप राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और दुबई के शासक शेख मोहम्मद बिन राशिद अल मकतूम ने उसे पुरस्कृत किया। दुबई के शासक शेख मोहम्मद ने कहा कि अरब रीडिंग चैलेंज एक ऐसी सभ्यता का निर्माण करने प्रतियोगिता है जो किताबों के माध्यम से शुरू होती है। हमारा लक्ष्य है कि हर घर में कम से कम एक पाठक हो। हम हमारे अरब युवाओं के लिए बिना पढ़े और ज्ञान के बेहतर भविष्य का निर्माण नहीं कर सकते।

70 किताबें पढ़ीं प्रतियोगिता जीतने के लिए
प्रतियोगिता जीतने के लिए बकर ने 70 किताबें पढ़ीं। उसने कहा, 'मुझे पढ़ना पसंद है, क्योंकि ऐसा बहुत कुछ है जिसे आप सीख सकते हैं ताकि सफल हो सकें। मैं सभी बच्चों को इस प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए आमंत्रित करती हूं, क्योंकि यह बहुत ही फायदेमंद है।' जूरी के एक सवाल के जवाब में उसने कहा, एक किताब को तीन बार पढ़ना तीन किताबों को एक बार पढ़ने से बेहतर है। इससे हम सीख सकते हैं और अपने जीवन में लागू कर सकते हैं।


ट्यूनिशिया के एडम दूसरे स्थान पर

ट्यूनीशिया के एडम अल कासिमी पढ़ने की चुनौती में दूसरे स्थान पर रहे, जबकि जॉर्डन के राशिद अल खतीब ने तीसरा स्थान हासिल किया। एडम को एक लाख दिराम (20 लाख रुपए से अधिक) और राशिद को 70 हजार दिराम (करीब 15 लाख रुपए) का नकद पुरस्कार दिया गया।