महाभारत के युद्ध में गुरु द्रोणाचार्य को मारने के लिए कृष्ण ने अश्वत्थामा नामक हाथी को हथियार बनाया था| इसलिए कृष्ण ने अश्वत्थामा नाम के हाथी को मारकर यह अफवाह फैला दी कि अश्वत्थामा मारा गया और युधिष्ठिर से यह कहवा दिया गया कि “अश्वत्थामा हतो: नरो वा कुंजरो:” (यानि अश्वत्थामा मारा गया आदमी या जानवर पता नहीं) कृष्ण ने एक और चाल चली थी “वा कुंजरो” के समय जोर से शंख बजा दिया था ताकि द्रोणाचार्य यह सुन न सके|
दरअसल सवाल यह नहीं है कि ओसामा वास्तव में मरा या नही लेकिन जो सवाल उसकी मौत पर संदेह पैदा कर रहे हैं उनका ज़वाब कौन देगा? मसलन, उसके मृत शरीर की तस्वीर जारी क्यों नहीं की गई? जो तस्वीर इन्टरनेट पर जारी की गई उसकी सत्यता के प्रमाण क्या हैं?
दूसरी बात यह भी है कि कहीं अमेरिका मौत की अफवाह फैला कर निजी फायदा तो नहीं उठा रहा है? कुछ तथाकथित विशेषज्ञ इसे आतंक का खात्मा बता रहे हैं और हद तो तब हो गई जब ओसामा को एक विचारधारा के नाम से देखा गया| हमें यह समझना पड़ेगा कि आतंक और आतंकवाद का खात्मा किसी एक ओसामा के मर जाने से नहीं हो सकता| आतंकवाद इसी वैश्विक सामाजिक व्यवस्था की नीतियों का परिणाम है| इसे खाद पानी भी उन्ही राष्ट्रों के द्वारा मिलता है और कुछ राष्ट्र इसका निजी स्वार्थ के लिए उपयोग करते है| जबतक इन खामियों को दूर नहीं किया जाएगा तबतक आतंक का खात्मा संभव नहीं| आज जिस ओसामा नामक सांप को मारकर अमेरिका वाह वाही लूट रहा है उसे दूध भी उसी ने पिलाया था| कोई भी बचपन से हथियारों के साथ पैदा नहीं होता इसी व्यवस्था में वह हथियार उठाने को मजबूर होता है लेकिन राष्ट्राध्यक्ष क्या ऐसा कोई प्रयास करते हैं कि एक इंसान हैवान न बने? अगर नहीं तो आतंक और आतंकवादी खत्म हो जाएँ यह सपना देखने की आदत छोडनी पड़ेगी| अपने आप को सबका दादा बताने वाले अमेरिका को एक ओसामा को मारने में दस साल क्यों लग गए? इसके पीछे एक कुटिल राजनीतिक अध्याय है जिसका अध्ययन होना चाहिए| अमेरिका पाकिस्तान से यह क्यों नही पूछ रहा है कि ओबामा आपके यहाँ क्यों मिला? जबकि कल से आजतक ओबामा और पाकिस्तानी शासकों का इंटरव्यू टी वी पर कई बार आ चुका है जिसमे पाकिस्तान से बेरहमी से स्वीकारा है कि ओसामा उसके यहाँ नहीं है|
हम भारतीयों की यह कमजोरी होती है भावनाओं में बहुत जल्दी बह जाते हैं और झूठा जश्न भी हमें खुशी देता है| ओसामा के मरने के बाद भी ऐसा ही दिख रहा है| सवाल यहाँ यह है कि क्या वक्त खुश होने का है? हमारे लिए ओबामा भी उतने ही खतरनाक हैं जितने ओसामा|लेकिन अमेरिकियों की दलाल हमारी सरकार के रहनुमा क्या इस बात को समझ पाए? आजतक कसाब जिन्दा है और अफजल को इसलिए फांसी पर लटकाया नहीं जा रहा है क्योंकि उससे धार्मिक उन्माद फ़ैल सकता है| लानत है ऐसी खुशी पर| सच यह भी है कि ओसामा अमेरिका की मर्ज़ी से ही जिंदा था और अमेरिका की मर्ज़ी से ही मारा गया|
गिरिजेश कुमार
जहाँ तक मुझे पता है तालिबान को तत्कालीन सोवियत संघ के खिलाफ अमरीका ने ही पोषित किया था वाही तालिबान अब अमरीका के गले की फांस बन चुके हैं.ओसामा बिन लादेन अगर वास्तव में मार दिया गया है (?) तो भी इसे तालिबान का खात्मा तो समझना ही नहीं चाहिये.
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है दोस्त!!!
ये आतंक का खात्मा नही है ये एक चौधरी का अपने लंगड़े और विद्रोही घोड़े का कतल करने के अलावा और कुछ नही है
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