कल आधी रात के बाद मेरे मोबाईल पर एक मेसेज आया –“मेरे पापा के ऑफिस का क्लर्क, जी पी एफ अकाउंट खोलने का 300 रूपये मांग रहा है| क्या करें?” मैंने जवाब दिया “उस क्लर्क के मुँह पर थप्पड़ मारिये और निगरानी विभाग, पटना को सूचित कर दीजिए|” थोड़ी देर बाद उसी व्यक्ति का पुनः मेसेज आया “आप उसे 300 रूपये दे दीजिए, क्योंकि जी पी एफ अकाउंट खोलने का रेट अभी यही चल रहा होगा” ये उसी सवाल का किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा दिया गया जवाब था| जी , हमारे देश में ज्यादातर लोगों की मानसिकता ऐसी ही हो चुकी है| उन्होंने इस अपनी जिंदगी का हिस्सा मान लिया है| भ्रष्टाचार की जड़ दरअसल यहीं से शुरू होती है| ऐसे में बड़ा सवाल यही है कि अन्ना हजारे जिस घुन के दवा की मांग कर रहे हैं, जंतर-मंतर के घोषित अनशन को आजादी की दूसरी लड़ाई कह रहे हैं क्या वह इस मानसिकता को बदल सकती है? ऐसे में अगर अन्ना हजारे जंतर-मंतर पर अनशन करते हुए मर भी जाएँ तो क्या भ्रष्टाचार खत्म हो पायेगा? सीधा और टका सा ज़वाब है- नहीं| सवाल यह भी है कि जिस तरह से पूरी व्यवस्था घुन की तरह सड़ चुकी है उसकी दुर्गन्ध को सिर्फ एक कानून बनाकर कैसे दूर किया जा सकता है?
समझना यह भी पड़ेगा कि भ्रष्टाचार के आखिर मायने क्या हैं? 2G, सी ए जी, राष्ट्रमंडल खेल और आदर्श सोसायटी जैसे बड़े घोटाले, जिसमे सरकार के बड़े-बड़े मंत्री सहित कई अफसर शामिल पाए गए, या निचले स्तर से छोटे मोटे घोटाले, जिसमे एक दलाल से लेकर लाल बत्ती वाले अफसरों की भागीदारी होती है? इसे परिभाषित करने की ज़रूरत है| क्योंकि आम लोगों को काम सुरेश कलमाड़ी और कनिमोंझी जैसे लोगों से नहीं प्रखंड स्तर, या पंचायत स्तर पर छोटे सरकारी दफ्तरों से पड़ता है|
दूसरी तरफ़ सरकार के विरोध में जो गुस्सा आम लोगों में है व उग्र रूप लेकर कहीं ऐसा न हो कि हिंसक और अराजक स्थिति में पहुँच जाए|अन्ना हजारे ने जो भरोसा दिलाने की कोशिश की है उसके टूटने में अगर केन्द्र सरकार आड़े आती है तो निश्चित ही वह स्थिति एक सभ्य समाज के लिए ठीक नहीं होगी| बाकी बहस तो बाद में भी हो सकती है लेकिन पहले एक कानून बनने दिया जाने चाहिए था| डेली न्यूज़ एक्टीविस्ट मे प्रकाशित


