क्या हम किसी बड़े हादसे का इंतजार कर रहे हैं?

पिछली बार जब 18 सितम्बर की शाम धरती हिली थी,
जिसके झटके पूरे उत्तर भारत में महसूस किये गए थे, यह सवाल तब भी उठा था। यह सवाल
तब भी उठा था जब 26 जनवरी 2001 को गुजरात भूकंप से तबाह हो गया था। और यह सवाल कल
भी उठा, परन्तु स्थितियां न तो तब बदली और न ही आज। आनेवाले समय में इसे बदलने की
उम्मीद कितनी है, पता नहीं! लेकिन इन सबके बीच सवाल यह भी है स्थितियां बदलती
क्यों नहीं हैं?
हालाँकि सच यह भी है कि कर्तव्यविमुख सरकारें
अपनी जिम्मेदारियों से भी मुँह मोड़ चुकी हैं। आम जनता अपनी जीवनशैली इस तरह से बना
चुकी है, जहाँ इस तरफ़ सोचना उसके कार्यक्षेत्र के दायरे में नहीं आता। भूकंप
जानलेवा नहीं होता, बल्कि कमजोर इमारतें भूकंप के कारण गिरकर जानलेवा बन जाती हैं।
लेकिन विकास का पैमाना समझे जाने वाली ऊँची इमारतें अपने दायरे को फैलाकर पूरे शहर
को जिस तरह से कंक्रीट के जंगल में तब्दील कर रही हैं, वह किसी दिन कब्रगाह में
बदल जाए तो कोई आतिशयोक्ति नहीं होनी चाहिए। लेकिन बड़ा सवाल यह भी है कि अगर विकास
का रास्ता इन्ही कंक्रीट जंगलों से होकर गुजरता है तो उसमे भूकंपरोधी तकनीक का
इस्तेमाल क्यों नहीं किया जाता? परन्तु आम आदमी के जान की फ़िक्र यहाँ किसे है? बिल्डर
जानते हैं कि मरने के बाद हर ज़िन्दगी की कीमत तय होगी और लोग इसे भगवान का दंड
समझकर चुप भी हो जायेंगे। फिर सबकुछ यूँ ही चलता रहेगा। अगर कुछ छूट जाएगा तो वह होगा
न मिटने वाली यादें और न रुकने वाले आँसू। बार-बार हिलती धरती किसी बड़े खतरे का संकेत
है या यह मात्र एक प्राकृतिक घटना, यह तो आनेवाला वक्त बातायेगा लेकिन इससे बचाव
के पर्याप्त उपाय समय रहते नहीं किये गए तो आनेवाले समय में भूकंप से जानमाल के
नुकसान का अंदाज़ा लगाना मुश्किल होगा। ज़ाहिर है खामियाजा पूरे मानव समाज को भुगतना
होगा।
गिरिजेश कुमार
sarthak post hae ,yahi to vidambna hae ki hmare pas taknik hote huye bhi ham asamarth haen kyonki pauvar to bas sarkar ke pass hi hota hae majboor ho hi jate haen.
ReplyDeleteहमारी अधिकतर बिल्डिगें भूकंपरोधी नहीं हैं. आपदा प्रबंधन का बुरा हाल है. शायद कुछ वर्षें में सरकार जाग जाए. प्रकृति उतना समय दे दे तो बेहतर है.
ReplyDelete