क्या यह कहा जा सकता है कि तक़रीबन दो महीने पहले अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के खिलाफ़ जिस लड़ाई को हवा दी, बाबा रामदेव उसके आगे की कड़ी हैं? क्या देश की जनता भ्रष्टाचार के खिलाफ जिस तरह से गोलबंद हुई थी काले धन के मुद्दे पर एक बार फिर लोगों की वही जिजीविषा दिखेगी? दरअसल सवाल सिर्फ़ यही नहीं है कि कितना समर्थन मिलेगा या सरकार का रवैया क्या होगा बल्कि सवाल यह भी है कि जिस भ्रष्टाचार रूपी घुन ने पुरे सिस्टम को खोखला बना दिया उसकी दवा मांगने चाहे अन्ना हजारे आयें या बाबा रामदेव, क्या समुचित इलाज हो पायेगा?
यह सच है कि देश की जनता भ्रष्टाचार से उब चुकी है और काला धन भी वापस लाना चाहती है इसलिए एक बात तो इस सत्याग्रह में भी दावे के साथ कहा जा सकता है कि लोगों की भीड़ जुटेगी| लेकिन यह कतई नहीं कहा जा सकता कि समाधान यहाँ भी निकलेगा|
दरअसल बाबा रामदेव जिस लड़ाई को अंजाम तक पहुंचाना चाहते हैं उन सवालों के घेरे में वो खुद आते हैं| हालाँकि यहाँ यह कहने का मतलब यह नही है कि बाबा के इस आंदोलन को सिरे से नकार दिया जाए लेकिन आम जनता की इस लड़ाई में उसकी भागीदारी सुनिश्चित होनी चाहिए| हर भीड़ व्यवस्था परिवर्तन के लिए नहीं जुटती| और सिर्फ़ भीड़ जुटाना किसी समस्या का समाधान नहीं है| अन्ना हजारे के आंदोलन में स्वतः स्फूर्त भीड़ सड़कों पर उतरी थी लेकिन हश्र क्या हुआ? उस आंदोलन से सीख लेना पड़ेगा| अगर भ्रष्टाचार सबसे बड़ा मुद्दा था तो फिर तमिलनाडु में जयललिता को जनता को नहीं चुनना चाहिए था| क्योंकि उनके ऊपर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं| काले धन, मंहगाई जैसे मुद्दों के लिए सीधे-सीधे कांग्रेस दोषी है लेकिन विधानसभा चुनावों में एक बार फिर कांग्रेस को लोगों ने वोट क्यों दिया? यानी आम जनता की नाराजगी आखिर किस बात को लेकर है यह स्पष्ट ही नहीं हो सका है तो फिर समाधान का रास्ता कैसे निकाला जाए? यह गंभीर प्रश्न है|
यह भी सच है देश का मीडिया एक बार फिर बाजार की तलाश में बाबा को कवर करेगा| हालाँकि सरकार की मंशा पहले से ही स्पष्ट है| जिस तरह अन्ना हजारे के आंदोलन को आश्वासनों की आड़ में दबा दिया गया इस आंदोलन को भी दबा दिया जाएगा| इसके प्रयास शुरू हो चुके हैं| यानी इस बात को अच्छी तरह समझा जा सकता है देश में भ्रष्टाचार, काला धन और मंहगाई जैसे मुद्दों को लेकर जब कभी भी कोई आंदोलन करेगा सरकार अपनी गंभीरता दिखाएगी और मीडिया अपने बाजार की तलाश में उसे लाइव कवर करेगा| कुछ दिन व्यवस्था परिवर्तन की सुगबुगाहट दिखाई देगी फिर सबकुछ वैसा ही चलेगा| याद कीजिये उस दिन को आअज से लगभग सिर्फ़ दो महीने पहले जब अन्ना हजारे की माँग सरकार ने मानी थी तो उसे भ्रष्टाचार के खिलाफ़ देश की जनता की जीत बताया गया था, यानी हमने भ्रष्टाचार को खत्म कर दिया था लेकिन आज फिर उसी भ्रष्टाचार के खिलाफ सत्याग्रह की ज़रूरत आन पड़ी| यह हास्यास्पद है|
एक बात और खुद चार्टर्ड विमान में सफर करने वाले और लक्जरी कार में घूमने वाले बाबा रामदेव काले धन को वापस लाने की माँग को लेकर अनशन पर बैठेंगे यानि सरकार के साथ साथ बाबा लोग भी जनता को उल्लू बनाने के लिए आगे आ चुके हैं| फिर भी संसद के दरवाजे से लोकतंत्र का नारा लगाया जाता है| ये आश्चर्य नही तो और क्या है?
गिरिजेश कुमार
बिल्कुल सही सही और खरी खरी लिखी है, असल में इस समस्या का तत्काल कोई इलाज नजर नहीं आता|
ReplyDeleteगिरिजेश भाई, आपकी तार्किक शैली पाठक को सोचने के लिए विवश करती है। बधाई।
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