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Thursday, July 1, 2010

मरीज नहीं मर्ज़ का इलाज कीजिये

अन्याय और अत्याचार के खिलाफ आवाज़ उठाने की मनुष्य की सदा से प्रवृत्ति रही है | अपने हक और हुकूक की लड़ाई तो हमें लड़नी ही चाहिए लेकिन क्या इसके लिए मानवता और इंसानियत का गला घोंटा जा सकता है ? इसपर विचार करने की ज़रूरत है |
पिछले ३ महीनों में सी आर पी एफ के १४९ निर्दोष जवानों को नक्सलियों ने मौत के घाट उतार दिया | जल ,जंगल और जमीन नहीं छिनने देंगे का नारा देने वाले नक्सली जिंदगी और ज़वान को छीनने पर क्यों तुले हुए हैं ? अगर अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाना इंसानियत है तो इसके नाम पर निर्दोषों की हत्या हैवानियत | इस हैवानियत की हद को पार करने की कोशिश एक ऐसा आतंक पैदा करेगा जिसके डर से मानव सभ्यता कभी उबर नहीं पाएगी | तो आखिर इसके मायने क्या हैं ?
बड़ा अफ़सोस है, लेकिन सच है कि किसानों पर अन्याय के विरुद्ध जो आंदोलन नक्सलबाड़ी से शुरू हुआ था वह आज अपने उद्देश्य से भटक गया है | इसे अंजाम तक पहुँचाने कि जिम्मदारी उनकी थी जिनका विचारों से गहरा नाता था | जहाँ ज़रूरत थी एक स्वस्थ सामाजिक ,वैचारिक क्रांति कि वहाँ लोगों में घृणा और डर घोला जा रहा है | जिन पूंजीपतियों और पूंजीवाद के खिलाफ इन्होने अपना आंदोलन छेड रखा है क्या उनको बढ़ने से रोक पाए ?
आज़ादी के ६३ वसंत देख चुके भारत में जहाँ एक तरफ अमीर अमीर बनता जा रहा है तो गरीब गरीब | इन विषम परिस्थितियों में जब देश कि राजनितिक पार्टियां कुर्सी और सत्ता के लालच में जनता के उम्मीद और सपनों पर काली चादर डाल चुकी है तो एक मात्र विकल्प था सही विचारधारा से लैस कुछ लोगों की जो निःस्वार्थ भाव से लोगों की वैचारिक सोच को मजबूत करते, लेकिन अपने आप को विचारधारा से मजबूत होने का दावा करने वाले लोग ऐसे घिनोने हरकत कर रहे है जिससे लोग अपने आप को उस जगह पर खड़े पा रहे हैं जिसके आगे कुआँ है तो पीछे खाई |
व्यवस्था परिवर्तन कि ख्वाहिश आज़ादी आंदोलन में शामिल नेताओं ने भी रखी थी , लेकिन निर्दोषों का खून बहाकर नहीं |इसलिए अगर सच में व्यवस्था परिवर्तन करना है तो इसके लिए हिंसा का रास्ता छोडकर वैचारिक मानसिकता विकसित करने का आंदोलन छेडना होगा अन्यथा हमारे ज़वान यूँ ही मरते रहेंगे और हम उन्हें शहीद का दर्ज़ा देते रहेंगे | आजतक इसका समाधान सिर्फ इसलिए नहीं हो पाया क्योंकि हमने कभी इसकी जड़ तलाशने की कोशिश नहीं की | इसलिए यहाँ ज़रूरत मरीज के इलाज की नहीं मर्ज़ के इलाज की है | लेकिन पता नहीं यह बात हमारे देश के कर्णधारों को कब समझ में आएगी ?

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