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Tuesday, July 6, 2010

बंद किसके हित में ?

लोकतंत्र में जनता कि भलाई के लिए विपक्ष को बंद सहित विरोध का कोई भी रास्ता अपनाने का अधिकार है लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि वह अपनी सीमाओं के सभी दायरे को लाँघ कर पहले से ही महंगाई से तंग निरीह जनता के घावों पर मलहम लगाने के बजाये उसे और ताज़ा करे | जनता के हित में आयोजित बंद से आम गरीब लोगों को क्या फायदा हुआ ? उलटे उनकी तो मजदूरी भी मारी गई | इस बात कि चिंता क्या हमारे देश के राजनेताओं को है ?हम मानते हैं कि शासन सत्ता पर बैठे लोग जब आम लोगों कि जिंदगी में ज़हर घोलने का काम करती है तो हमें विरोध में आवाज़ उठानी ही चाहिए ,लेकिन हमें यह भी ध्यान में रखना होगा कि जिसके लिए हम आवाज़ उठा रहे हैं फायदा उसे हो वरना इसका कोई मतलब नहीं रह जायेगा |राजनितिक दलों को भी यह समझना होगा कि भलाई के नाम तोड़फोड़ और गुंडागर्दी दिखाने से समस्या का हल नहीं हो जायेगा बल्कि इससे तो और इजाफा होगा | पिछले ५ सालों में अगर कोई मुद्दा सबसे ऊपर है तो वह है महंगाई | इस मुद्दे पर न जाने कितनी बार संसद से सड़क तक हंगामा हुआ ? लेकिन अगर नतीजों की बात करें तो वह आज भी सिफ़र है | क्या कारण है कि महंगाई का भूत हमारा पीछा नहीं छोड़ रहा ? इतने हंगामे के बाद भी सरकार के कानों में अबतक जूँ क्यों नहीं रेंगी ? यह एक बड़ा सवाल है |
कल भी भारत बंद किया गया था | लेकिन अफ़सोस कि जिस जनता के आंसू पोंछने के नाम पर ये बंद आयोजित किया गया था वह सिर्फ एक राजनितिक नौटंकी बन कर रह गया | आखिर राजनीतिक दल आम जनता कि भावनाओं के साथ खिलवाड़ क्यों करते है ? इस महंगाई से सबसे ज्यादा परेशान तो वह जनता है जिसके समर्थन पर ये जनता कि तथाकथित हितैषी पार्टियां राज करती हैं | लेकिन इनकी कारगुजारियों से जब वही जनता भूखे मरने को विवश होती है तो ये लोग चुपचाप आँखे बंद कर तमाशा देखते हैं | आज हालत यह है गरीब से लेकर मध्यम वर्गीय परिवार के लोग अपने आप को असहाय पा रहे हैं | राजनितिक पार्टियां ब्लेम गेम का खेल खेल रही हैं और इन सबके बीच पिसती है आम जनता जिसे अपने वोट की कीमत भी नहीं पता |
बंद बुलाया तो जाता है आम जनता के नाम पर लेकिन इससे आम जनता ही अनभिज्ञ रहती है | वो आज भी इसे राजनितिक पार्टियों का काम समझते हैं | महंगाई ने आम जनता की जहाँ कमर तोड़ दी है वहीँ बंद का असर भी सबसे ज्यादा जनता पर ही पड़ता है | यह सच है की दोनों तरफ से जनता की ही मौत होती है | लेकिन फिर भी जब पानी सर के ऊपर से निकलने लगे तो आखिर लोगों के पास रास्ता क्या बचता है ?
आज इस देश की हालत यह है कि एक तरफ गरीब जनता के पैसों पर राजनेता राज करते हैं और दूसरी तरफ वह गरीब भूखे रहता है | ज़रूरत इस बात की है कि आम जनता को ध्यान में रखकर महंगाई सहित तमाम मुद्दों पर मंथन किया जाये लेकिन पता नहीं कब तक ये लोग जनता कि भलाई के नाम पर घडियाली आंसू बहाते रहेंगे ?

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