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Saturday, August 21, 2010

नई इबारत लिखेगा राष्ट्रमंडल खेल

अगले महीने राष्ट्रमंडल खेल शुरू होने जा रहे हैं| १२ दिन चलने वाले इस आयोजन में ८२ देशों के लगभग ८००० खिलाडी भाग ले रहे है| जब इतना बड़ा आयोजन हो रहा है तो निश्चित ही बड़े बजट की आवश्यकता होगी| इसकी तैयारी के लिए अरबों रूपये खर्च भी किये गए| लेकिन अब यह सवाल उठ रहा है कि भारत जैसे देश में क्या राष्ट्रमंडल खेल होने चाहिए? उन परिस्थितियों में जब एक तरफ आम लोग गरीबी, भूखमरी, मंहगाई, बेरोजगारी जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं| अरबों रूपये खर्च कर राष्ट्रमंडल जैसे खेल के आयोजन की सार्थकता क्या है? अगर यही पैसा देश की मूलभूत सुविधाओं पर खर्च किया जाता तो इस देश का अभूतपूर्व विकास होता|

इन तर्कों को अगर सच की कसौटी पर कसा जाये तो इसका वितर्क नहीं है| सवालों को अगर वर्तमान परिस्थितियों की नज़र से देखें तो बिलकुल जायज हैं| लेकिन क्या इसके लिए हम सच्चाई को नकार सकते हैं? कदापि नहीं| आखिर हमारे यहाँ गरीबी क्यों है? क्योंकि हमने आजतक उनकी ओर ध्यान ही नहीं दिया| कभी उसे समाप्त करने का प्रयास ही नहीं किया| राजनेताओं ने गरीबों का कुर्सी से चिपके रहने के लिए उपयोग किया| अगर कुछ कार्यक्रम शुरू भी किये गए तो वो चंद लालची और खुदगर्ज़ लोगों की भेंट चढ गया| इसलिए आज हम गरीबी का रोना रोते हैं| हमारे यहाँ लोग भूख से क्यों मरते हैं? इसलिए नहीं की खाने के लिए अनाज नहीं है बल्कि इसलिए कि, नीतिनिर्धारक उसे गोदामो की शोभा बढाने के लिए रखना चाहते हैं| बेशर्मी की हद को पार करते हुए हमें इसका अफ़सोस भी नहीं होता| देश की सरकारों को आम लोगों की जिंदगी से जुड़े सवालों से कोई सरोकार ही नहीं है| कुर्सी की भूख और सत्ता के लालच ने इन्हें इतना अंधा बना दिया है कि उस सीढ़ी के पहले पायदान(जनता) को ही तोड़ने (नज़रंदाज़ करने) में शर्म नहीं आई| इसी तरह देश में व्याप्त हर समस्याओं के पीछे एक ठोस कारण है| जिसके समाधान को ढूँढने की ज़रूरत है|

यह हमारी मेहनत और इच्छाशक्ति का ही परिणाम है कि आज विश्व समुदाय हमपर भरोसा कर रहा है| हमने खुद को इस काबिल बनाया कि राष्ट्रमंडल जैसे खेलों की मेजबानी हमें सौंपी गई| इसका आयोजन हमारे लिए गर्व की बात है| इसलिए ज़रूरत इस बात की है कि इस आयोजन को देश की संप्रभुता से जोड़ते हुए इसका सफल आयोजन करें| हर नागरिक का भी ये कर्तव्य है कि इसे सफल बनाने में सहयोग करे| भारतीय इतिहास में कुछ तारीखों ने वो इबारत लिखी जिसकी प्रति आज भी स्वर्णाक्षरों में मिल जायेगी| हम उम्मीद करते हैं कि राष्ट्रमंडल खेल ऐसी ही इबारत लिखेगा|

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