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Sunday, November 13, 2022

अंतरिक्ष में भारत के नए युग की शुरुआत, अब स्पेसएक्स को मिलेगी टक्कर

स्काईरूट द्वारा बनाया रॉकेट

 नई दिल्ली। स्पेसएक्स की तरह भारत भी अब निजी रॉकेट के जरिए   अंतरिक्ष में कदम रखने को तैयार है। भारत का पहला निजी तौर पर   विकसित रॉकेट विक्रम-एस तीन पेलोड के साथ मिशन पर 15 नवंबर को   लॉन्च के लिए तैयार है। हैदराबाद स्थित अंतरिक्ष स्टार्टअप स्काईरूट   एयरोस्पेस द्वारा इसे विकसित किया गया है। स्काईरूट एयरोस्पेस का   यह पहला मिशन है। इसका नाम 'प्रारंभ' रखा गया है। रॉकेट दो   भारतीय और एक विदेशी पेलोड ले जाएगा। इसे श्रीहरिकोटा में भारतीय   अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के लॉन्चपैड से लॉन्च किया जाएगा। 

विक्रम एस क्या है?

भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक विक्रम साराभाई के नाम पर रॉकेट का नाम विक्रम एस रखा गया है। यह एक छोटा-लिफ्ट लॉन्च वाहन है। इसे अंतरिक्ष उद्योग के लिए एक नए युग की शुरुआत का संकेत बताया जा रहा है। स्काईरूट एयरोस्पेस के चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर नागा भरत डाका के अनुसार विक्रम-एस रॉकेट एक सिंगल-स्टेज सब-ऑर्बिटल लॉन्च व्हीकल है जो तीन ग्राहक पेलोड ले जाएगा और अंतरिक्ष लॉन्च वाहनों की तकनीकों का परीक्षण और सत्यापन करने में मदद करेगा।

सीरीज में तीन रॉकेट, इंटरनेट जीपीएस की सेवाएं बेहतर होंगी 

'विक्रम' सीरीज में तीन रॉकेट हैं जिन्हें छोटे उपग्रहों को लॉन्च करने के लिए विकसित किया जा रहा है। ये अंतरिक्ष और पृथ्वी इमेजिंग से ब्रॉडबैंड इंटरनेट, जीपीएस, आईओटी जैसी संचार सेवाओं को बेहतर करने में मदद करेंगे।

815 किलो तक के उपग्रह को ले जा सकेंगे
स्टार्टअप मीडिया एंड इंफॉर्मेशन प्लेटफॉर्म आईएनसी42 की रिपोर्ट में कहा गया है कि विक्रम सीरीज़ (1, 2, 3) में सॉलिड-स्टेट रॉकेट शामिल हैं जो कार्बन कंपोजिट और 3डी-प्रिंटेड मोटर्स के साथ अपग्रेड होनेवाले आर्किटेक्चर पर बनाए गए हैं। इसे 72 घंटे से कम समय में असेंबल और लॉन्च किया जा सकता है। वे 815 किलोग्राम तक के वजन वाले उपग्रहों को पृथ्वी की निचली कक्षा और सूर्य-समकालिक ध्रुवीय कक्षाओं  में ले जा सकते हैं।

विक्रम-1 सीरीज का पहला प्रक्षेपण होगा जिसमें तीन ठोस ईंधन, साथ ही एक तरल-ईंधन किक चरण शामिल है। यह कम झुकाव वाली कक्षाओं में 480 किलोग्राम वजन वाले हल्के उपग्रहों को ले जाने में सक्षम होगा। अन्य दो, विक्रम 2 और विक्रम 3 में कई कक्षीय सम्मिलन के साथ भारी पेलोड होंगे।

सब-ऑर्बिटल मिशन क्या है?
एक सब-ऑर्बिटल(उप-कक्षीय) अंतरिक्ष यान तब होता है जब एक अंतरिक्ष यान उस गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र को छोड़ देता है जिससे इसे लॉन्च किया गया था। उप-कक्षीय मिशन कक्षा की तुलना में कम ऊंचाई पर होते हैं। वास्तविक कक्षा में अंतरिक्ष यान के प्रक्षेपण से पहले प्रयोग के रूप में इन्हें महत्वपूर्ण माना जाता है। चेन्नई स्थित एक एयरोस्पेस स्टार्टअप, स्पेसकिड्ज़ विक्रम-एस के उप-कक्षीय उड़ान पर भारत, अमेरिका, सिंगापुर और इंडोनेशिया के छात्रों द्वारा विकसित 2.5 किलोग्राम पेलोड 'फन-सैट' उड़ाएगा।

 2020 में इसरो ने निजी कंपनियों के लिए खोला था दरवाजा
इसरो ने 2020 में निजी क्षेत्र को पहली बार रॉकेट एवं उपग्रह बनाने और प्रक्षेपण सेवाएं मुहैया कराने की अनुमति दी थी। हैदराबाद में स्थित, स्काईरूट पहला स्टार्टअप है जिसने अपने रॉकेट लॉन्च करने के लिए इसरो के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए। इसका उद्देश्य किफायती, विश्वसनीय और सभी के लिए नियमित अंतरिक्ष उड़ान के मिशन को आगे बढ़ाते हुए कम लागत पर उपग्रह प्रक्षेपण सेवाओं को उपलब्ध कराना है.। 


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